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२४६. भाषण : छत्रपुरमें

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[६ दिसम्बर, १९२७ या उससे पूर्व ]

मैं बड़ी उत्सुकतासे उस दिनकी प्रतीक्षा कर रहा हूँ जब कि भारतकी भगिनी भाषाओंके बीच चल रही इस हानिकर स्पर्धाका पूरी तरह अन्त होगा। जिस तरह एक भाई अपनी अनेक बहनोंको एक-सा लाड़-प्यार देता है, उसी तरह हम इन सभी भाषाओंको लाड़-प्यार क्यों नहीं देते ? इस हानिकर स्पर्धाका परिणाम यह हो रहा है कि हम अपनी मातृभाषाको भूलते जा रहे हैं और अन्य भाषाओंसे ईर्ष्या करते तथा बड़ी आसानीसे इस बातमें विश्वास कर लेते हैं कि अंग्रे कि अंग्रेजी भारतकी आम भाषाका स्थान ले लेगी, यहाँतक कि मातृभाषाका भी । वस्तुतः मेरे पास एक सुझाव आया था कि यहाँ इस सभामें मैं अंग्रेजी में बोलूं। मैं इसे मातृ-भूमिकी दुहिता भाषाके प्रति प्रेमका अभाव मानता हूँ और विदेशी भाषाके प्रति अस्वस्थ प्रेम मानता हूँ। यह बात नहीं कि मैं अंग्रेजीसे घृणा करता हूँ लेकिन यह बात जरूर है कि मैं हिन्दीसे अधिक प्रेम करता हूँ । यही कारण है कि मैं भारतके शिक्षित वर्गके लोगोंसे हिन्दीको अपनी आम भाषा बनानेके लिए निवेदन कर रहा हूँ | हिन्दीके माध्यमसे ही हम दूसरे प्रान्तोंसे सम्पर्क स्थापित कर सकते हैं और अन्य प्रान्तीय भाषाओंका विकास कर सकते हैं। एक विदेशी भाषाके जरिये शिक्षा प्राप्त करने के कारण यदि हमारे दिल और दिमाग कमजोर न हो गये होते तो कोई कारण नहीं है कि हम सभी लोग पाँच-छ: प्रान्तीय भाषाएँ क्यों न जानते होते । भाषाओंके बीच स्पर्धाके सम्बन्धमें मेरी कही गई बात संकीर्ण प्रान्तीयताकी भावनापर भी लागू होती है। यह वही प्रान्तीयतावाद है जिसने हमारी राष्ट्रवादी भावनाके पूर्ण विकासको अवरुद्ध कर दिया है। राष्ट्रीयताकी भावनाको बढ़ानेके खयालसे स्वर्णिम नियम यह है कि जो अधिक शक्तिशाली हो उसे निर्बलकी, जहाँतक सम्भव हो, मदद करनी चाहिए और उसके लिए त्याग करना चाहिए। और अब आप स्वस्थ राष्ट्रीयताके विकासमें सहायक हो सकेंगे और गरीबों और पददलितोंके तन ढँकनेवाली खादीके औचित्यको समझ सकेंगे ।

[अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १५-१२-१९२७
 
  1. १. अपने " साप्ताहिक पत्र " में महादेव देसाईने बताथा है कि चिकाकोलमें लड़कोंने "जन-गण-मन " का गायन किया था, किन्तु किसी संकीर्ण विचारोंवाले आन्ध्रवासीने उसमें से “ उत्कल " शब्दको निकाल कर " आन्ध्र " शब्द रख दिया था। इस अवसरपर गांधीजी इसी संकोणताको भावनाके खिलाफ बोले थे।