२४३. तार : जमनालाल बजाजको
बरहामपुर
५ दिसम्बर, १९२७
आश्रम
मोहनलाल मिला था। तुम्हारे और जयदयालजीके तार मिलने से पहले ही उसे घर भेज दिया।
बापू
पाँचवें पुत्रको बापूके आशीर्वाद
२४४. पत्र : आश्रमकी बहनोंको
बरहामपुर
मौनवार [५ दिसम्बर, १९२७]
तुम्हारा मणिबहनको लिखा हुआ पत्र मिला । आज मेरे पास बहुत समय नहीं है। आश्रम शृंगार तो हरगिज नहीं होना चाहिए, इस बारेमें मुझे जरा भी शंका नहीं हैं। इतना तो साफ ही है कि जबतक देशमें भयंकर भुखमरी फैली हुई है, तबतक रत्ती-भरकी अंगूठी भी रखना या पहनना पाप है। कपड़े तो शरीरको ढँकने और सरदी-गरमीसे बचनेके लिए ही पहने जाने चाहिए। इस आदर्शतक पहुँचनेका सब बहनोंको प्रयत्न करना चाहिए ।
शृंगारकी उत्पत्तिके बारेमें तो आज नहीं लिखूंगा । ऐसा नहीं लगता कि मेरा सवाल तुमने अच्छी तरह समझ लिया है ।
लक्ष्मीबहन बीमार कैसे हो गईं ? वे तो बीमार पड़ती नहीं थीं ।
बापूके आशीर्वाद
- गुजराती (जी० एन० ३६७९) की फोटो-नकलसे ।
- ↑ १. गांधीजी इस दिन बरहामपुर में थे।