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भाषण : चिकाकोलकी सार्वजनिक सभामें

छोड़ रहे हैं। मेरी तरह आप भी जानते हैं कि बच्चे वूम्रपानके बारेमें अपने कौतूहलको सन्तुष्ट करनेके लिए पैसोंकी चोरी करते हैं। इसलिए मैं आपसे धूम्रपानकी आदतके साथ असहयोग करनेको और इस प्रकार बचनेवाले पैसेको भी मेरे साथ बाँटनेको कहता हूँ ।

इसी प्रकार हिन्दुओंको अस्पृश्यता-रूपी पिशाचके साथ भी असहयोग करना चाहिए। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि यह पिशाच हमें ईश्वरकी ओरसे विमुख किये हुए है, और अस्पृश्यताकी बाधा हमारे ही विनाशके लिए रची गई है।

इसके बाद महात्माजीने श्रोता-समुदायमें से किसी व्यक्ति द्वारा लिखकर पूछे गये कुछ प्रश्नोंके उत्तर दिये। पहला प्रश्न था: मातृभूमिके उत्थानके लिए नवयुवक लोग अब क्या तरीके अपनायें ? महात्माजीने कहा :

बहुत-सी चीजें हैं जो मैं सुझा सकता हूँ, लेकिन एक चीज है जो वे सबसे अधिक सरलतासे कर सकते हैं, और वह है खादी-कार्य । वे हर महीने या हर वर्ष अमुक धन-राशि खादी-कार्यके निमित्त अलग निकाल सकते हैं। यदि उनके पास समय हो तो वे उसे अपने जिलेमें खादी-कार्यका संगठन करनेमें लगा सकते हैं । यदि वे इसे करना शुरू कर दें तो वे देखेंगे कि उन्होंने वह दे दिया है, जो उनमें सर्वोत्तम है। यदि वे संगठन कार्य न कर सकें या यदि उनमें यह आत्म-विश्वास न हो कि वे संगठन कार्य कर सकेंगे तो वे प्रतिदिन आधा घंटा कताईको दे सकते हैं और अपना सूत अखिल भारतीय चरखा संघको भेजकर उसके सदस्य बन सकते हैं ।

दूसरा प्रश्न किसी सार्वजनिक कार्यकत्र्ताम अपेक्षित शैक्षणिक तथा अन्य योग्यता-ओंके बारेमें था। महात्माजीने कहा :

जहाँतक शैक्षणिक योग्यताओंका प्रश्न है, सार्वजनिक कार्यकर्ताको अपने प्रान्तकी भाषा जाननेके अलावा राष्ट्र-भाषा हिन्दी भी अवश्य जाननी चाहिए। लेकिन अन्य योग्यताएँ तो कहीं ज्यादा महत्त्वपूर्ण हैं। कार्यकर्ताओंको पूर्णत: ईमानदार होना चाहिए और उनका निजी चरित्र शुद्ध होना चाहिए। जिन लोगोंकी दृष्टि सीधी नहीं है और जिनके मन पाशविक प्रवृत्तियोंसे भरे हुए हैं वे राजनीतिक कार्य करनेके उपयुक्त नहीं हैं। और मेरी रायमें जबतक वह हर कीमतपर सत्य और अहिंसाका पालन करनेमें विश्वास नहीं रखता, तबतक उसे राजनीतिज्ञ नहीं होना चाहिए।

तीसरे प्रश्नका उत्तर देते हुए महात्माजीने कहा :

हमारे सभी नेता जब तरह-तरहकी योजनाएँ सोचने और बनानेमें लगे हुए हैं, तब हम साधारण कार्यकर्त्तागण सबसे अच्छा काम यही कर सकते हैं कि चरखेके सन्देशको पूरी तरह कार्यरूपमें परिणत कर डालें। साठ करोड़ रुपये बचानेके प्रयत्नमें हाथ बँटाना आपके और मेरे लिए कोई छोटी बात नहीं है। आप और मैं सब लोग विधान परिषदों, विधान-सभाओं और नगरपालिकाओंमें तो नहीं जा सकते। यदि हम जाना भी चाहें तो हमारे पास सभी योग्यताएँ नहीं होंगी। लेकिन खादीके लिए जिन योग्यताओंकी आवश्यकता है, वे हम सबमें जन्मसे ही मौजूद हैं। इसके लिए