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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

काममें समय व्यतीत करना कहीं बेहतर है। अब आपके बीचमें स्वयंसेवक लोग जायेंगे; आप जो-कुछ दे सकें, उन्हें दें।

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, २१-९-१९२७

१२. भाषण : सार्वजनिक सभा, त्रिचनापल्लीमें

२१ सितम्बर, १९२७

महात्माजीने अपने भाषणके दौरान सत्याग्रहके उन दिनोंकी चर्चा की जब वे त्रिचनापल्ली आये थे। उन्होंने कहा कि उस यात्रामें मुझे कुछ बहुत ही अच्छे साथी कार्यकर्त्ता प्राप्त हुए थे। उस समय जो एकता सब जगह दिखाई देती थी, अब उसकी जगह मतभेदोंने ले ली है, फिर भी खादीका काम देशमें कितने ही उतार-चढ़ावोंके बावजूद सुस्थिर गतिसे चल रहा है। खादीमें मतभेदोंकी गुंजाइश नहीं है, क्योंकि खादीका सम्बन्ध तो जन-साधारणसे है और जन-साधारणमें कोई मतभेद नहीं है। त्रिचनापल्ली चन्देमें कितना ही धन दे, लेकिन यदि गाँववालोंके पवित्र हाथोंसे तैयार होनेवाली खादी आप लोग नहीं पहनते तो यह सारा धन कोई मूल्य नहीं रखता। एक बार सर्व-प्रचलित हो जानेपर खादीको आर्थिक सहायता देनेकी जरूरत नहीं रह जायेगी। खादीको आज आर्थिक सहायताकी जरूरत है, यह इस बातका द्योतक है कि जिन लाखों भूखसे पीड़ित लोगोंके बलपर हम जिन्दा है, उनके प्रति हम अपना कर्तव्य नहीं कर रहे हैं ।

नदी के जलको गन्दा किये जानेकी चर्चा करते हुए महात्माजीने कहा कि पवित्र कावेरी नदीके एक तटपर त्रिचनापल्ली है और दूसरे तटपर श्रीरंगम् । मैं जो बात कहने जा रहा हूँ वह अकेले त्रिचनापल्लीकी ही बात नहीं है। यह तो सारे भारतमें एक आम बात है। मैं आपका ध्यान इस ओर इसलिए खींच रहा हूँ कि यहाँ कार्यकर्ताओंकी एक बड़ी फौज है और वे यदि चाहें तो इस कठिन समस्यासे निपट सकते हैं। उन्होंने कहा :

कल मुझे श्रीरंगम् नगरपालिकाके अध्यक्षसे और आज सुबह श्रीरंगम् में विवेकानन्द आश्रमके नवयुवकोंसे बात करनेका सौभाग्य मिला। सभी स्वीकार करते हैं कि श्रीरंगम् की दशा कतई अच्छी नहीं है। मेरी नम्र राय में अस्वच्छताका कारण पैसेकी कमी नहीं है और न नदीके जलकी अस्वच्छता ही धनकी कमीका कारण है। इसका कारण तो सिर्फ हमारी घोर उदासीनता है। हमारे सामने धूल और गन्दगीका जो ढेर इकट्ठा होता चला जाता है हम उसे देखते ही नहीं हैं। हमें सफाई और स्वच्छताका आरम्भिक ज्ञान रखनेवाले ऐसे स्वयंसेवकोंकी फौजकी जरूरत है जो जन- साधारणको सफाई और स्वच्छताके बुनियादी सिद्धान्तोंकी शिक्षा दे । जिस नदीसे हम