पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 35.pdf/३९१

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३६३
भाषण : रामनाडकी सार्वजनिक सभामें

कुछ पुरुषों और स्त्रियोंके पास, जो खुद भी सरल हैं और शायद जानबूझकर हैं,क्योंकि इसके अतिरिक्त वे और कुछ हो ही नहीं सकते . . .[१]

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, २-१२-१९२७

२३४. भाषण : रामनाडकी सार्वजनिक सभामें

३० नवम्बर, १९२७

सभापति महोदय और मित्रो,

मानपत्रों, सूतकी मालाओं और अनेक थैलियोंके लिए मैं आपका आभारी हूँ । सचमुच ईश्वर सर्वशक्तिमान है। यदि हमारे पास आँखें हों तो हम क्षण-प्रतिक्षण उसकी महानता देख सकते हैं। साढ़े पाँच बजे झड़ी लगी हुई थी। मैंने उसे देखकर तय कर लिया था कि सभा नहीं होगी। परन्तु मेरी आशंका निराधार सिद्ध हुई । बादल छँट गये और अब हमारे सामने एक विशाल समुदाय एकत्र होता जा रहा है। मैं इतना अहंकारी नहीं कि सोचने लगूं कि ईश्वरने सिर्फ मेरी खातिर या आपकी खातिर ही यह सब कर दिया है। पर इतनी विनम्रता मुझमें है कि मैं हमारे निकट चलनेवाले घटना क्रममें और उसके हमारे अनुकूल बननेमें इस सबके पीछे ईश्वरकी महानताके दर्शन कर सकता हूँ। हमारे अन्दर इतनी विनम्रता होनी चाहिए कि जब यह घटना क्रम हमारे प्रतिकूल पड़े और हमारे मार्गमें भाँति-भांतिकी बाधाएँ आ खड़ी हों, तब हम ईश्वरको दोष न देने लगें, यह न सोचने लगें कि वह इतना महान नहीं है। मानव-इच्छाओंकी नगण्यता तो आप यहीं इसी समय देख सकते हैं, जब मैं भाषण दे रहा हूँ।[२] मैं चाहता हूँ कि आप सब वर्षाके इन घुमड़ते बादलोंमें मानवकी क्षुद्रता और ईश्वरकी महानताको पहचानें, भले ही आप सिरोंपर छाते तान लें । पर मैं यहाँ आपको ईश्वरकी महानताके बारेमें भाषण देने नहीं आया हूँ; और न ईश्वरको अपनी महानता विज्ञापित करनेकी ऐसी कोई जरूरत ही है, जैसी मुझको है। उसकी महानता तो कालके विशाल पृष्ठपर अमिट अक्षरोंमें अंकित है। इसलिए, आइए, हम उसकी महानताके आगे शीश नवाकर, फिर अपने काम में लग जायें।[३]

बहुत दिनोंसे मेरी बड़ी इच्छा थी कि मैं यथाशीघ्र यहाँ आऊँ; और पिछली बार जब मैं यहाँसे केवल तीस मीलकी दूरीतक पहुँच कर भी यहाँ नहीं आ सका तो मेरा मन बड़ा दुखी हो गया था। इसलिए यहाँ आकर आपसे थैली प्राप्त करनेकी अपनी इच्छाकी पूर्तिसे मुझे अतीव प्रसन्नता हुई है। मैं आपको बतला दूं कि इस सभामें आनेसे पहले मैं महिलाओंकी एक सभामें गया था। उनको कोई भाषण दरकार नहीं था, वे नहीं चाहती थीं कि मैं भाषण करूं। मैंने उनको देखकर यही अनुमान लगाया कि

  1. १. इसके बाद गांधीजी खादो, सत्य और प्रेमके सम्बन्धमें बोले ।
  2. २. हल्की-सी बूँदाबांदी होने लगी थी और कई श्रोताओंने अपने छाते खोल लिये थे।
  3. ३. इस समपतक वर्षा बिलकुल थम चुकी थी।