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२३२. भाषण : तेल्लीपल्ली बुनाई स्कूल, जफनामें

२९ नवम्बर, १९२७

बुनाई पाठशालाको स्थापित करनेके लिए महात्माजीने प्रबन्धकोंको बधाई दी, लेकिन उनसे कहा कि जबतक वे हाथ-कताईको भी इसमें शामिल नहीं करेंगे इसे पूरी सफलता नहीं मिलेगी। उन्होंने कहा कि बुनाई पाठशालाकी सफलता उन लोगोंकी आवश्यकतासे नहीं आंकी जा सकती जो चन्द रुपये माहवार कमा लेनकी नीयत से इसमें प्रशिक्षित हुए हैं, बल्कि उस पद्धतिसे आँकी जा सकती है जिससे पूरा समाज सम्पन्न और संस्था आत्मनिर्भर बन सकेगी। उन्होंने कहा हाथ-कताईको यदि आपने हाथ-बुनाईसे अलग किया और कताईके लिए मेहनतानेकी माँग की तो आप पूरी तरह निराश होंगे। उन्होंने आगे बोलते हुए कहा कि हिन्दुओं और ईसाइयोंने जिस प्रकार मिलकर मेरा स्वागत किया है, मुझे आशा है यही भावना उनके सभी सम्बन्धोंको प्रभावित करती रहेगी।

[अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, २-१२-१९२७

२३३. भाषण : जफना कालेज, जफनामें

२९ नवम्बर, १९२७

आपके इस प्रायद्वीपमें इतनी सारी शिक्षण संस्थाओंमें जाने और उन्हें देखनेसे मुझे बहुत ज्यादा खुशी हुई है। इन सब खुशियोंमें इस कालेजमें, जो मैं समझता हूँ कि इस प्रायद्वीपकी सबसे पुरानी शिक्षण संस्था है, आनेकी खुशी भी कुछ कम नहीं है। और फिर मुझे बताया गया है कि इस संस्थाके बहुतसे पुराने विद्यार्थी आज देशके विशिष्ट सेवक हैं। और अन्तिम बात यह है कि बंगलोरमें मुझे आपके वाइस- प्रिंसिपलसे मिलनेका सौभाग्य मिला था । स्वागत समितिके दो सचिव भी इस स्कूलके पुराने विद्यार्थी रह चुके हैं। लड़के और लड़कियोंके मुस्कराते हुए चेहरे देखकर मुझे हमेशा ही प्रसन्नता होती है। मुझे यह भी मालूम है कि जिस कार्यको करनेका सौभाग्य मुझे प्राप्त है, वह कार्य आज बहुत-से वयस्क लड़के कर रहे हैं, जिन्होंने कि अपना सब कुछ मातृभूमिकी सेवाके लिए अर्पित कर दिया है। इसलिए आपकी थैली मेरे लिए बहुमूल्य है। मैं जानता हूँ कि ये सारी रकमें तथा यह छोटी रकम भी, जो मुझे लड़के और लड़कियोंसे प्राप्त हुई है, बड़ी उम्र के दुनियादार व्यक्तियोंसे प्राप्त रकमोंकी अपेक्षा अधिक फलप्रद सिद्ध होंगी। आपने जो रकम दी है, उसपर सरलताकी छाप पड़ी हुई है, और यह जायेगी भी उन करोड़ों या उन करोड़ोंमें से