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भाषण : सर रामनाथन बालिका विद्यालय, जफनामें

उन्होंने पैसा खर्च करके पति नहीं पाया था, और न उन्होंने अपनेको बिकने ही दिया। लेकिन आज वे हिन्दू समाजके आकाशको एक देदीप्यमान नक्षत्रकी तरह गौरवान्वित कर रही हैं और उनका नाम सात सतियोंमें लिया जाता है। क्यों ? इस- लिए नहीं कि उन्होंने किसी शिक्षण-संस्थासे कोई उपाधि प्राप्त की थी, बल्कि इस- लिए कि उन्होंने अश्रुतपूर्व तपस्या की थी। मुझे मालूम हुआ है कि यहाँ दहेजकी दुर्भाग्यपूर्ण प्रथा है, जिसके कारण युवतियोंको अपने लिए सुयोग्य जीवन-साथी पाना बहुत मुश्किल हो जाता है। वयस्क लड़कियोंसे और आपमें से कुछ वयस्क हैं ऐसे प्रलोभनोंपर विजय पानेकी आशा की जाती है। यदि आप इन कुरीतियोंका विरोध करना चाहती हैं तो आपको, आपमें से कुछको, जीवन-भर या कमसे-कम कुछ वर्ष कुमारी रहना पड़ेगा। फिर जब आपके शादी करनेका समय आयेगा और आपको लगेगा कि आपको एक जीवन-साथी चाहिए ही तो आप पैसे या प्रसिद्धि वाले अथवा शारीरिक दृष्टिसे सुन्दर पुरुषके लिए आकुल न रहेंगी, बल्कि आप पार्वतीकी तरह एक ऐसे जीवन-साथीको ढूंढ़ेगी, जिसमें वे सारे अनुपम गुण विद्यमान हैं जो ऊँचे चरित्रके लिए आवश्यक हैं। आप जानती हैं कि नारदजीने पार्वतीके सामने शिवका कैसा चित्र प्रस्तुत किया था। बिलकुल दरिद्र, अंगमें भभूति लगाये, किसी भी तरहसे सुन्दर न दिखनेवाला ब्रह्मचारी । यह वर्णन सुनकर पार्वतीने कहा था -- - हाँ, यही मेरा पति है। जबतक आपमें से कुछ लड़कियाँ तप करनेमें ही -- पार्वतीकी तरह हजार वर्षतक नहीं संतोष नहीं मानतीं समाजमें तबतक बहुत-से शिव तैयार नहीं होंगे। हम कमजोर मानव-प्राणी ऐसा नहीं कर सकते, लेकिन आप कमसे-कम अपने जीवनको अवधिमें ऐसा कर सकती हैं। यदि आप इन शर्तोंको स्वीकार करेंगी तो फिर गुड़ियोंके राज्यमें खो जानेको कतई तैयार न होंगी, बल्कि पार्वती, दमयन्ती, सावित्री और सीताकी तरह सती बननेका प्रयत्न करेंगी। मेरे विचारसे तब और केवल तभी आप ऐसी संस्थाके योग्य सिद्ध हो सकेंगी। ईश्वर आपमें यह महत्वाकांक्षा भरे और यदि आपमें यह आकांक्षा हो तो उसे फलीभत करनेमें वह आपका सहायक हो ।

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, २-१२-१९२७