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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लेकिन, आपको बता दूं कि भारत-भरमें हजारों-हजार लड़कियोंसे मिलनेके बाद अब यह कठिन है कि लड़कियाँ अपने अच्छे कार्योंको मुझसे छिपा सकें। अब तो कुछ लड़कियाँ मुझे अपने बारेमें बुरी बातें बताने में भी संकोच नहीं करतीं। मैं यही आशा करूंगा कि इस समय मेरे सामने उपस्थित लड़कियोंमें से कोई भी वैसा कोई बुरा काम नहीं करती। मेरे पास आपके साथ जिरह करने के लिए समय नहीं है, इसलिए मैं आपसे प्रश्न पूछ-पूछकर आपको ऊबाने नहीं जा रहा हूँ। लेकिन, यदि हमारे बीच ऐसी लड़कियाँ हों जो बुरे काम करती हों तो वे समझ लें कि उनकी शिक्षा बेकार है ।

आपके माता-पिता आपको गुड़िया बननेके लिए स्कूलोंमें नहीं भेजते। इसके विप- रीत, आपसे दयाकी देवी बननेकी अपेक्षा की जाती है। ऐसा समझनेकी भूल न करें कि केवल अस्पतालोंमें एक खास ढंगकी पोशाक पहननेवाली लड़कियाँ ही दयाकी देवी मानी जा सकती हैं। जब कोई दयाकी देवी बन जाती है तो वह तुरन्त अपनी चिन्ता कम और जो लोग उससे अधिक दीन-दुखी और अभागे हैं, उनको चिन्ता ज्यादा करने लगती है। और मुझे भेंट की गई थैलीमें अपनी शक्ति-भर दान देकर आपने दयाकी देवीका ही काम किया है, क्योंकि यह थैली उनके निमित्त भेंट की गई है जो दुर्भाग्यवश आपसे कहीं अधिक गरीब हैं। थोड़ा-सा पैसा दे देना बड़ा आसान है, लेकिन कोई छोटा-सा काम खुद करना ज्यादा कठिन है। यदि आपके मनमें उन लोगोंके प्रति, जिनके लिए आपने पैसे दिये हैं, कुछ दया हो तो आपको एक कदम आगे जाकर, इन लोगों द्वारा तैयार की गई खादी भी पहननी चाहिए। जब खादी आपके पास लाई जाये तब यदि आप उसको पहननेपर यह कहें कि 'खादी कुछ खुरदरी है, इसलिए हम इसे नहीं पहन सकते' तो मैं यही समझँगा कि आपमें आत्म-त्याग की भावना नहीं है ।

यह तो इतनी अच्छी चीज है कि इसके सम्बन्धमें उच्च वर्ग और निम्न वर्ग, स्पृश्य और अस्पृश्यका कोई सवाल ही नहीं उठता और यदि आपके हृदयकी भावना भी वैसी ही हो और आप अपनेको अन्य लड़कियोंसे ऊँची नहीं समझती हों तो यह सचमुच बहुत अच्छी बात है। ईश्वर आपका कल्याण करे !

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, २-१२-१९२७