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२२९. भाषण : सेन्ट्रल कालेज, जफनामें

२९ नवम्बर, १९२७

भारतके करोड़ों अधभूखे लोगोंके लिए उदारतापूर्वक भेंट की गई इस थैलीके लिए मैं आपका हृदयसे आभारी हूँ। महोदय, आपने अभी जिस महत्त्वपूर्ण सवालको दोहराया है, उसकी सूचना आपने मुझे समय रहते कल ही भेज दी थी ।[१] यदि मैं इस सवालका जवाब देना टाल सकता तो मुझे बहुत खुशी होती, क्योंकि अमीसे लेकर साढ़े दस बजे तक मुझे बहुत से कार्यक्रमोंमें शरीक होना है। इसके अलावा, इसके कुछ और भी कारण हैं, जिन्हें मैं बताना जरूरी नहीं समझता। मगर मेरे जीवनका तो यही सिद्धान्त रहा कि जब और जैसे मुझे अटपटी स्थितिमें डालनेवाले ऐसे प्रसंग आयें, मैं उन्हें टालूँ नहीं, बल्कि उन्हें स्वीकार करके उनसे निबटता चलूं, बशर्ते कि उनसे निबटना मेरे लिए बिलकुल असम्भव ही न हो। इसलिए मेरे पास जो कुछ-एक मिनटका समय है, उसमें मैं इस प्रश्नका उत्तर देना चाहता हूँ ।

एक वाक्यमें कहूँ तो मैं यह कहूँगा कि अनेक वर्षोंसे नाजरथके जीससको मैं विश्वके बड़े धर्मगुरुओंमें से एक मानता आया हूँ और यह बात मैं सम्पूर्ण विनम्रताके साथ कह रहा हूँ। विनम्रताका दावा मैं इसलिए कर रहा हूँ कि मैंने जो कुछ कहा है, बिलकुल वही मेरे हृदयकी अनुभूति है। हाँ, यह तो है ही कि एक गैर-ईसाई और हिन्दूके नाते मुझे नाजरथके जीससका स्थान जितना ऊँचा लगा है, ईसाई लोग उन्हें उससे कहीं अधिक ऊँचे स्थानके योग्य मानते हैं। बजाय यह कहनेके कि मैं उन्हें अमुक स्थान देता हूँ, मैंने जो यह कहा है कि वे मुझे अमुक स्थानके अधिकारी लगते हैं, वह जान-बूझकर कहा है, क्योंकि मैं मानता हूँ कि किसी महान व्यक्तिका स्थान निर्धारित करनेका अधिकार न मुझे है और न किसी अन्यको । वैसा करना धृष्टता ही होगी । मानव जातिके महान गुरुओं और पथप्रदर्शकोंको किसीने कोई स्थान दिया नहीं है, बल्कि वे मानव जातिकी सेवा करनेके बलपर स्वयं उस स्थानके अधिकारी बन गये हैं। लेकिन किन्हीं लोगोंके बारेमें कुछ अनुभव करनेका अधिकार तो हममें से अधमसे अधम और तुच्छसे-तुच्छ व्यक्तिको भी है। मानव जातिके ऐसे महान गुरुओं और हमारे बीच का सम्बन्ध कुछ-कुछ पति-पत्नीके सम्बन्ध जैसा होता है। यदि मैं तर्क द्वारा यह तय करने लग जाऊँ कि मैं अपने हृदयमें अपनी पत्नीको कौनसा स्थान देता हूँ तो यह बहुत भयानक बात होगी। अपने हृदयमें उसे स्थान विशेषपर प्रतिष्ठित करना मेरे बसकी बात नहीं है। इसके विपरीत वह वास्तव में वहाँ जिस स्थानकी अधिकारिणी है, उस स्थानपर आसीन है। यह बात विशुद्ध रूपसे अनुभूतिसे सम्बद्ध है। तब मैं यह कह सकता हूँ कि मेरे हृदयमें जीसस मानव-जातिके एक महान शिक्षकके रूपमें प्रतिष्ठित

  1. १. काळेजके प्रिंसिपलने गांधीजीसे पूछा था कि वे ईसा मसीहको विश्वके महान धर्म गुरुओंके बीच ईश्वर द्वारा भेजे दूतके रूपमें नहीं, बल्कि एक मनुष्य और गुरुके रूपमें कौन-सा स्थान देंगे।