२२७. पत्र : रामेश्वरदास पोद्दारको
मार्गशीर्ष शुक्ल ५ [२९ नवम्बर, १९२७ ]
आपका पत्र मीला है। मैं कल फिर देश तरफ प्रयाण करूंगा। रामनामका जप दिलसे करनेसे अवश्य शांति मीलेगी ।
बापुके आशीर्वाद
- जी० एन० १८९ की फोटो-नकलसे ।
२२८. भाषण : सेंट जॉन कालेज, जफनामें
२९ नवम्बर, १९२७
यदि आप मुझसे यहाँ मिलनेको आतुर थे तो मैं कह सकता हूँ कि मैं भी इसके लिए कुछ कम उत्सुक नहीं था । यद्यपि मैं लखपतियों द्वारा भेंट किया गया पैसा भी स्वीकार करता हूँ और कृतज्ञतापूर्वक स्वीकार करता हूँ, किन्तु लड़के-लड़कियोंसे, जो अभी अपने जीवनका निर्माण कर रहे हैं, छोटे-छोटे दान वे चाहे जितने भी छोटे हों प्राप्त करके मुझे कहीं अधिक प्रसन्नता होती है। इसके दो कारण हैं। एक तो यह कि जो दान भोले-भाले लड़के-लड़कियोंसे मिलते हैं वे उनके दानसे कहीं अधिक फलप्रद साबित होते हैं जिन्हें दुनियादार लोग माना जा सकता है। दूसरा कारण यह है कि आप जैसे लोगोंसे दान पाकर मैं ज्यादा जिम्मेदारी महसूस करता हूँ...।[२]
मैं आपके सौजन्य और उदारताका कोई प्रतिदान देनेमें असमर्थ हूँ। मैं तो ईश्वरसे सिर्फ यही प्रार्थना कर सकता हूँ कि वह आपको अपने जीवनमें अच्छे काम करनेकी शक्ति दे। मैं जानता हूँ कि मस्तिष्ककी शिक्षाके साथ-साथ यदि हृदयको भी सच्चा प्रशिक्षण नहीं मिलता तो वह शिक्षा कुछ नहीं है । ईश्वर करे, अपनी बुद्धिके साथ-साथ आपके हृदयका भी विस्तार हो। मैं एक बार फिर आपको धन्यवाद देता हूँ ।
हिन्दू, २-१२-१९२७