२२५. पत्र : आश्रमकी बहनोंको
जफना
२८ नवम्बर, १९२७
यह इलाका भी लंका कहलाता है, फिर भी दक्षिणी लंकासे बहुत निराला है। यहाँ तो तमिल-हिन्दुस्तानियोंकी ही बस्ती है। और वे हिन्दुस्तानके ही सारे रीत-रिवाज पालते हैं। इसलिए दक्षिण भारतमें और इसमें कोई फर्क नहीं दिखाई देता। यह जरूर जान पड़ता है कि यहाँकी बहनें शायद दक्षिणसे कुछ ज्यादा आजादीके साथ रहती हैं। यहाँ एक गुजराती दम्पति है। बहन (काशीबाई) राजकोटके अच्छे घरानेकी लड़की है। उसके पति बड़ौदाके प्रसिद्ध हरगोविन्ददास काँटावालाके पुत्र हैं। वे यहाँ न्यायाधीश है। उनकी सज्जनताकी काफी ख्याति है। मेरा आधा खाना तो यहाँ काशीबाई पहुँचाती है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि बा छुट्टीपर है ।
कल यहाँसे रवाना हो रहे हैं। अब जहाँ जाना है वहाँ सचमुच अस्थि-पंजर हैं। उनके दर्शन पुनः करने, हृदयको और अधिक मथने और चरखेका मर्म और अधिक समझने के लिए अधीर हो रहा हूँ ।
बापूके आशीर्वाद
- गुजराती (जी० एन० ३६७८) की फोटो-नकलसे ।
२२६. पत्र : टी० बी० केशव रावको
२९ नवम्बर, १९२७
आपका पत्र मिला। मेरा निश्चित मत है कि 'गीता' को पढ़ने और समझनेका सबको अधिकार है। समय मिलनेपर 'यंग इंडिया में आपके पत्रके बारेमें लिखनेको आशा करता हूँ ।[१]
हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी
- अंग्रेजी (जी० एन० १५९) की फोटो-नकलसे ।
- ↑ १. इसके बारेमें गांधीजीने शायद "सत्यका विरूपण " ८-१२-१९२७ में लिखा था।