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१०. भाषण : वाई० एम० सी० ए०[१] पुत्तूरमें

२० सितम्बर, १९२७

अध्यक्ष महोदय और मित्रो,

आप लोगोंकी तरह मुझे भी श्री हेवर्डकी अनुपस्थितिका दुःख है। उनसे मिलने तथा थोड़ी बातचीत करनेका सौभाग्य मुझे उनके जाने से पूर्व मिला था । मुझे दुःख है कि मैं आपको भाषण जैसी कोई चीज नहीं दे सकूंगा, लेकिन आज सुबह सभाम आते समय मैं सोच रहा था कि में भारत में वाई० एम० सी० ए० को क्या चीज बनते देखना चाहूँगा। आपको मालूम ही है, ईसाई भारतीयोंके साथ मेरा सम्बन्ध दिन-ब-दिन बढ़ रहा है। दस साल पहले मुझे ईसाई भारतीयोंके इतने घनिष्ठ सम्पर्कमें आनेका अवसर नहीं मिला था जितना कि आज है। बहुतसे ईसाई भारतीयों तथा देशके बहुत से ईसाई संघोंके सम्पर्क में आनेपर मैंने देखा है कि अकसर ईसाई शब्दका अर्थ यूरोपीय समझा जाता है। आज सुबह जब मैं यहाँ आ रहा था तब मैंने मनमें सोचा कि क्या ही अच्छा हो अगर वाई० एम० सी० ए० को यंग मैन्स यूरोपीयन एसोसिएशनका बिलकुल पर्याय न समझा जाये । यद्यपि लाखों लोग ऐसा ही समझते हैं किन्तु मेरी दृष्टिमें "यूरोपीय" शब्दका वही अर्थ या भाव नहीं है जो कि ईसाई शब्दका है और मैं समझता हूँ कि ईसाई धर्म यूरोपीय धर्मके साथ मिलाये जानेपर प्रायः संकुचित बन जाता है। मेरी विनम्र रायमें तो कोई भी भारतीय केवल ईसाई हो जानेके कारण भारतीय ही न रहे, यह जरूरी नहीं है। ईसाई धर्मको अपनाना या धर्म-परिवर्तन करना एक नये जीवनको स्वीकार करना है इसलिए जो सच्चे दिलसे धर्म परिवर्तन करता है उससे में अपेक्षा करता हूँ कि वह अपनी राष्ट्रीयताको व्यापक बनाये। यदि वह अपने पड़ोसियोंकी चिन्ता नहीं करता तो फिर पड़ोसियोंकी परिधिके बाहरके लोगोंके बारेमें तो वह क्या चिन्ता करेगा ? में यह बात उन सभी ईसाई और मुसलमान मित्रोंसे करता हूँ जिनसे में भारत में मिलता रहता हूँ और जिन्होंने भारतको अपना देश बना लिया है या जिनकी जन्मभूमि भारत है। ऐसे संघोंको तोड़-फोड़के साधन न बनकर इस धरतीपर जो उत्तम है और सात्विक है उसका संरक्षण केन्द्र बनना चाहिए। शेष बातोंके लिए मैं आप लोगोंका ध्यान मद्रासमें वाई० एम० सी० ए० के सम्बन्धमें कहे गये अपने विचारोंकी[२] ओर दिलाता हूँ। आप लोगोंने मुझे अपने से मिलनेका अवसर दिया इसके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ।

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, २१-९-१९२७
  1. १. ईसाई युवक संघ ।
  2. २. ४ सितम्बर, १९२७ को; देखिए खण्ड ३४ ।