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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जफनाके किसी हिन्दू मित्रने मुझे लिखा है कि यहाँ हिन्दुओंके कुछ मन्दिरोंमें वेश्याओंका अमुक अवसरोंपर नाच कराया जाता है। अगर यह बात सच है तो आप देवालयोंको वेश्याओंके अड्डे बना रहे हैं । अगर मन्दिरको पूजास्थान होना है, देवस्थान रहना है तो उसे कुछ सुनिश्चित मर्यादाओंका पालन करना होगा। मन्दिरमें जानेका एक वेश्याको भी उतना ही अधिकार है, जितना किसी सन्तको है। मगर यह अधिकार तो उसे तब है जब वह वहाँ अपने पाप धोने जाये। मगर जब किसी मन्दिरके रक्षक धर्म या देवपूजनकी आड़में वेश्याको वहाँ ले जाते हैं, तब वे देवस्थानको वेश्यालय बना देते हैं। और अगर आपके पास कोई आकर यह साबित करनेकी कोशिश करे कि आपके मन्दिरोंमें वेश्याओंको नाचने या किसी ऐसे ही कामके लिए बुलाना उचित है तो वह कितना ही बड़ा या प्रतिष्ठित आदमी क्यों न हो, आप उसकी बात न मानें, और मेरी इस बातपर अड़े रहें। अगर आप हिन्दू बनना चाहते हैं, अगर आपको परमात्माकी पूजा मंजूर है, तो आप अपने मन्दिरोंके दरवाजे तथाकथित अछूतोंके लिए भी खोल दें। परमात्माके दरबारमें उसके भक्तों में कोई फर्क नहीं किया जाता । वह तो इन अस्पृश्यों और तथाकथित स्पृश्यों, सबकी पूजा एक-सी स्वीकार करता है। उसके यहाँ सिर्फ एक शर्त है प्रार्थना सच्चे दिलसे होनी चाहिए ।

और भी कई बातें हैं जिनपर आपको ध्यान देना है। आज आपको ऐसी दुनिया में रहना है जिसमें मुसलमान और ईसाई भी रहते हैं। इनका धर्म महान है और इनके अनुयायियोंकी संख्या भी विशाल है। आपके जफनामें मुसलमानोंकी आबादी मुश्किलसे २ या ३ प्रतिशत है, और ईसाइयोंकी १० प्रतिशत । चाहे ये दो फी सदी हों या बीस, मगर रहना आपको इन्हींके साथ है। और अगर मैं हिन्दू धर्मको ठीक- ठीक समझता हूँ तो सच्चा हिन्दू धर्म वही है जो दूसरे धर्मोकि साथ उदारता और सहिष्णुताका व्यवहार करे। और चूँकि वे भी इस अन्तरीप और इस द्वीपके वैसे ही बाशिन्दे हैं जैसे कि आप, इसलिए उन्हें अपना भाई मानना आपका फर्ज है। जबतक आप यह नहीं करते, आपमें सच्ची राष्ट्रीय भावनाका विकास नहीं होगा, जो अत्यन्त आवश्यक है, और फिर इसीलिए आपके अन्दर सच्चे हिन्दू धर्म और मानवीय भावनाका विकास भी नहीं होगा। आपको अपने लड़कोंकी शिक्षा-दीक्षाका प्रबन्ध करनेका अधि- कार है। मुझे इसकी खुशी है कि आपका अपना एक शिक्षा मण्डल है। आप उसको सही भावनाके साथ अधिक मजबूत बनाइए, मगर इसके मानी यह नहीं होने चाहिए कि आपकी और ईसाई धर्म प्रचारकोंकी शिक्षा संस्थाओंके बीच कोई खटपट रहे । अगर आपके यहाँ सुयोग्य शिक्षक हों और आप हिन्दू विद्यार्थियोंको यथेष्ट सुविधाएँ दें, तो फिर सब हिन्दू लड़के आपके यहाँ पढ़ने आयेंगे ही। और शिक्षाके क्षेत्रमें मैं पारस्परिक ईर्ष्याका तो कोई स्थान ही नहीं मानता। पर मैंने सुना है कि यहाँ ऐसा कुछ है। मुझे यह सुनकर खुशी हुई थी कि अभी हालतक हिन्दू, मुसलमान और ईसाई यहाँ पूरे मेल-मिलापसे रहते थे। अभी हालमें ही आपके और ईसाइयोंके बीच कुछ मनमुटाव हो गया है। और चूँकि आपकी संख्या उनसे बहुत अधिक है, उनसे मिलकर अपने झगड़े तय कर लेना आपका कर्तव्य है और अगर आप इस अभागी जाति प्रथाके भावको दूर कर सकेंगे तो आप देखेंगे कि सभी कठिनाइयाँ दूर हो जायेंगी।