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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

शूलकी तरह नहीं, बल्कि दूधमें शकरकी तरह रहें। आपको ऐसे लोगोंके बीच अपनी संस्कृतिके थातीदारकी तरह रहना चाहिए और उन लोगोंके सुख-दुखको अपना सुख-दुख समझना चाहिए ।

[ अंग्रेजीसे ]
विद गांधीजी इन सीलोन

२२०. भाषण : जफनामें

[१]

२७ नवम्बर, १९२७

मुझे याद भी नहीं कि आज कितनी सभाओंमें भाषण देना पड़ा है।[२] यह सभा आजकी आखिरी सभा है। मेरे लिए वे सभी सभाएँ महत्त्वपूर्ण थीं; मगर यह सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि आपने मेरे बोलनेके लिए विशेष रूप से हिन्दुओंकी यह सभा बुलाई है। इसके मानी मैं यह समझता हूँ कि आप हिन्दुओंसे में बतौर एक हिन्दूके बात करूँ। और इससे मुझे बड़ी खुशी हो रही है। आपको मालूम होगा कि मेरा दावा है कि मैं कट्टर हिन्दू हूँ, हालांकि दूसरे जो लोग अपनेको कट्टर हिन्दू कहते हैं, वे मेरे इस दावेको नहीं मानते। खैर, मैं सत्यका पुजारी हूँ इसलिए आपको भ्रममें नहीं डालना चाहता । अगर कट्टर हिन्दुत्वके मानी मुसलमानों और ईसाइयोंसे बैर करना हो, अगर कट्टर हिन्दुत्व सिखलाता हो कि इस आदमीको छुओ मगर उसे मत छुओ; इसका या उसका छुआ भोजन अपवित्र है, उसे मत खाओ, तो मैं कहूँगा कि मैं कट्टर हिन्दू नहीं हूँ। लेकिन अगर कट्टर हिन्दू होनेका अर्थ इस बातका सतत शोध करते रहना है कि दरअसल हिन्दू धर्मका सच्चा स्वरूप क्या है, और हिन्दू धर्मका जो भी सच्चा स्वरूप अपनी समझमें आये, उसीके अनुकरणका यथाशक्ति पूरा प्रयत्न करना, तो मैं दावा करता हूँ कि मैं सच्चा कट्टर हिन्दू हूँ । इसके अलावा महर्षि व्यासके मतानुसार भी मैं कट्टर हिन्दू हूँ। उन्होंने 'महाभारत' में कहा है कि तुलाके एक पलड़ेपर दुनिया के सभी यज्ञ आदि हों और दूसरेपर केवल सत्य हो तो भी सत्यका पलड़ा ही भारी रहेगा और राजसूय और अश्वमेध यज्ञों सहित सभी यज्ञोंका पलड़ा हल्का ही रहेगा। अब अगर 'महाभारत' को पंचमवेद माना जाये, तो मैं जरूर कट्टर हिन्दू हूँ, क्योंकि अपने जीवनके क्षण-क्षणमें मैं सत्यका ही अनुसरण करनेकी कोशिश करता हूँ, और इसके लिए कैसी भी कीमत चुकानी हो, मैं उसे कम गिनता हूँ ।

अब इस सभामें अपना दावा पेश कर चुकनेके बाद मैं आपसे कहूँगा कि मेरी विनम्र सम्मतिके अनुसार बतौर कट्टर हिन्दूके आपका यहाँ जफना और लंकामें क्या कर्तव्य है। सबसे पहले तो आपको उनका खयाल करना होगा, जिनकी आबादी इस द्वीपमें सबसे अधिक है। मैं आपको यह सुझाना चाहता हूँ कि वे आपके सहधर्मी हैं।

  1. १. यह भाषण लंका में रहनेवाले हिन्दुओंकी सभामें दिया गया था।
  2. २. गांधीजी इससे पहले नौ सभाओंमें भाषण कर चुके थे।