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जफनामें ईसाई मिशनरियोंके साथ चर्चा

उसने यह छूट दी है कि अगर अहिंसाका पालन न हो सके, तो वह हिंसाका सहारा ले सकता है। इसलिए किसी भी हालतमें अहिंसाका तत्त्व वास्तवमें दोनों धर्मोमें समान रूपसे मौजूद है। जो परस्पर लड़ रहे हैं वे इस्लाम और हिन्दू धर्म नहीं, बल्कि दोनों धर्मोके उपद्रवकारी तत्त्व हैं। इसलिए जब उपद्रवकारी तत्त्वोंको शक्ति छोज जायेगी तब दोनों धर्म स्वाभाविक दशामें आ जायेंगे; और यदि ऐसा न हुआ तो अडिगआस्था रखनेवाले एक व्यक्तिके नाते मुझे यह पक्का यकीन है कि जो भले हिन्दू और भले मुसलमान आज पिछली कतारोंमें पड़ गये हैं, वेईश्वर से प्रार्थना करनेमें अपार आस्था रखते हैं, और ईश्वर एक दिन उनकी प्रार्थना अवश्य सुनेगा और उपद्रवकारियोंको मुँहकी खानी पड़ेगी।

प्रश्न : मुझे आपके दक्षिण आफ्रिकामें किये गये कामसे हमेशा बड़ी दिलचस्पी रही है। वहाँ आपने जो काम किया उससे मुझे बड़ी खुशी हासिल होती रही है। क्या आप दक्षिण आफ्रिकाके अपने कामके अबतकके परिणामसे सन्तुष्ट हैं ?

महात्माजी : मैं कहने जा रहा था कि अत्यधिक संतुष्ट हूँ, पर वह शायद अतिशयोक्ति होगी। पर हाँ, मैं बहुत काफी सन्तुष्ट हूँ । इस समय तो हालात बड़े अच्छे नजर आ रहे हैं। परममाननीय शास्त्रीजी सचमुच बड़ा शानदार काम कर रहे हैं ।

'भगवद्गीता' और 'न्यू टेस्टामेन्ट' दोनों ही आपको प्रेरणा और शान्ति कैसे दे पाते हैं ? इस प्रश्नके उत्तरमें महात्माजीने कहा कि 'न्यू टेस्टामेंट 'से मेरी आत्माको अपार शान्ति और आनन्द मिला है, विशेषकर गिरि-शिखरवाले उपदेशसे, क्योंकि ठीक वही बात मेरे मनमें घूम रही थी। बाद मैंने 'गीता' का अध्ययन किया; और मुझे गिरि-शिखरवाले उपदेश और 'गोता 'में कोई अन्तर नहीं दिखाई पड़ा। गिरि-शिखरवाले उपदेशमें जो बात पूरे विस्तारसे स्पष्ट ढंगसे समझाई गई है, उसीको 'गीता'ने एक वैज्ञानिक शास्त्रीय सूत्रके रूप में पेश कर दिया है। 'गीता' एक अर्थमें तो शास्त्रीय या वैज्ञानिक ग्रन्थ है, परन्तु दूसरे अर्थमें वह शास्त्रीय नहीं भी है, क्योंकि उसमें मात्र बुद्धिसम्मत मार्गका नहीं, 'प्रपति' या ईश्वरके समक्ष शरणागतिका भी प्रतिपादन किया गया है। 'प्रपति' या शरणागतिको मैं विशुद्ध प्रेम ही कहूँगा,ऐसा प्रेम जिसमें समस्त प्राणि-मात्र समा जायें, कुछ ही प्राणियों या किसी प्राणी विशेषके प्रति प्रेम नहीं, ऐसा प्रेम जो हर प्रकारको घृणासे ऊपर उठ सके, अछूता रह सके। गांधीजीने बतलाया कि उन्होंने कैसे पहले-पहल 'ओल्ड टेस्टामेंट' और उसके बाद अत्यन्त हर्ष और उत्साहके साथ 'न्यू टेस्टामेंट' पढ़ा था और वे बादमें कैसे'भगवद्गीता' तक पहुँचे थे ताकि श्रोतागण इससे स्वयं समझ सकें कि उनकी प्रेरणाका स्रोत क्या और कहाँ है।

[ अंग्रेजीसे ]
सीलोन डेली न्यूज, १-१२-१९२७