पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 35.pdf/३७०

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३४२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लूंगा । आप शायद अब अच्छी तरह समझ गये होंगे कि मैं क्यों इतनी बेशर्मीसे हर दिन भिक्षा-पात्र लेकर दर-दर भटकता फिरता हूँ और हर आदमीसे कहता हूँ कि खुशीसे जितना बन सके इसमें डाल दो। अब मैंने आपका काफी समय ले लिया है। अब आप ऊबने लगे होंगे। इसलिए मुझे अपना भाषण समाप्त करना चाहिए और इसकी त्रुटियोंको ठीक करनेका काम आपपर ही छोड़ देना चाहिए। मैं छात्रोंके साथ कई अन्य विषयोंपर भी बात करना चाहता हूँ, क्योंकि उनको मुझपर भरोसा है, लेकिन आज मुझे अधिक कुछ नहीं कहना चाहिए ।

आपने जितना कुछ किया है और आप जो कर रहे हैं उस सबके लिए मैं समूचे हृदयसे आपका आभारी हूँ। मैं जब कोलम्बोमें था, आपने मेरे पास एक मसविदा भेजा था; यदि आप सब उसीका पालन करें, उसीके अनुसार चलें तो वह सचमुच आपकी बहादुरी होगी । हाँ, उस मसविदेमें एक अशुद्धि थी जिसे मैं शुद्ध कर देना चाहता था, लेकिन यह अब किसी अन्य अवसरपर करूँगा। आपने जिस धैर्यके साथ मेरी सारी बातें सुनीं है, उसके लिए मैं आपका आभारी हूँ ।

[ अंग्रेजीसे ]

हिन्दू, १-१२-१९२७

विद गांधीजी इन सोलोन

२१६. पत्र : हरजीवन कोटकको

जफना
२७ नवम्बर, १९२७

ब्रह्मचर्य किसे कठिन जान पड़ा है ? तुम तो विचलित नहीं हुए न ? खूब सजग रहना। भले ही दुनिया इधरसे उधर हो जाये किन्तु ली हुई प्रतिज्ञा छूटनी नहीं चाहिए। तुमने उपवास करनेका विचार करके ठीक ही किया है। उससे कितनी शान्ति मिलती है, यह देखना । शारदाको तो बिलकुल याद नहीं करते न ? खादीका ही स्मरण करना । खादी जैसी स्त्री तो जगतमें मिल ही नहीं सकती और यदि उसे असंख्य पुरुष भी बरें तो भी वह चिरकुमारी ही रहेगी, और जो पुरुष केवल उसोका वरण करता है वह उसे वरण करनेके बावजूद अखण्ड ब्रह्मचारी है। उसकी अनन्यभावसे भक्ति करते हुए तुम्हें अन्य बातोंपर विचार करनेका समय ही कहाँ मिलेगा ?

इस दुनियामें जो चीजें तुम्हारे लिए नहीं हैं उनके बारेमें सोच-विचार कैसा ? जब मेरे और तुम्हारे जैसे कुछ लोग दृढ़तापूर्वक अपनी प्रतिज्ञाका पालन करेंगे, तभी हम और यह दुनिया इस दावानलसे बच सकेंगे ।

[ गुजरातीसे ]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।
सौजन्य : नारायण देसाई