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भाषण : नेशनल कालेज, त्रिचनापल्लीमें,

राष्ट्रीय कालेजके छात्रोंसे हिन्दीके ज्ञानकी अपेक्षाकी जाती है; लेकिन अगर में पूछूं कि आपमें से कितने लोगोंको हिन्दी आती है, तो मुश्किलसे एक प्रतिशत लोग अपने हाथ उठायेंगे ।

आप पिछली फरवरीकी बात करते हैं और कहते हैं कि उस अवसरपर श्री राजगोपालाचारी और शंकरलाल बैंकरने खद्दरके आर्थिक पक्षपर बोलते हुए आपसे हृदयस्पर्शी अपील की थी। जो हमारे दिलकी गहराइयोंको छू ले वह हृदयस्पर्शी अपील है। लेकिन अगर मैं आपसे हाथ उठानेको कहूँ तो आप फिर एक दयनीय दृश्य प्रस्तुत करेंगे और यह जाहिर होगा कि आपमें से बहुत थोड़े लोग ही खद्दर पहनते हैं। अगर मेरा अनुमान सही है तो आपके लिए यह कहना गलत है कि फरवरी में आपसे की गई अपील हृदयस्पर्शी अपील थी । दूसरी जगहसे मिलीं थैलियोंके मुकाबले मैं आपकी थैलीको कम नहीं मानता, लेकिन मैं आपके इस विनम्र कथनसे सहमत हूँ कि आप जितना चाहिए था उतना रुपया जमा नहीं कर पाये हैं। अगर आपका दिल सचमुच उस अपीलसे हिल गया होता तो आप उससे कहीं ज्यादा रुपया इकट्ठा करते, जितना किया है। उचित तो यह था कि रुपया जमा करनेके अपने काम में मेरी बीमारीको बाधा समझने के बजाय आपको जितना वक्त और मिल गया था, उस वक्तको आप और अधिक धन जमा करने में लगाते । मेरी बीमारीसे इस अपील- की मार्मिकता और बढ़ जानी चाहिए थी, और आपको अपने मन में कहना चाहिए था : यह बूढ़ा आदमी बीमार पड़ गया है, और इसमें शक नहीं कि वह खादी कार्यको खूबीसे चला रहा था, तो अब चलो हम सब चरखेके काममें हाथ बँटायें और दूने जोरसे उसमें जुट जायें। इसके लिए हम जितना देनेवाले थे उससे दूना चन्दा दें; अपने विदेशी वस्त्र उतार फेंकें और सभी लोग खादी पहनने लगें।" उस अपीलका यही नतीजा होना चाहिए था, लेकिन इसके बदले आप मुझे बताते हैं कि मेरी बीमारी सुनकर आप सब तानकर सो गये । लेकिन बिगड़ी सुधरने, और शिक्षा ग्रहण करनेका हमेशा वक्त है। कालेज हमेशाके लिए बन्द नहीं हो गये हैं। आप अब भी छात्र हैं। मैं तो कुछ समय में त्रिचनापल्लीसे चला जाऊँगा, लेकिन खादी तो त्रिचनापल्ली या भारतसे विदा नहीं हो जायेगी। दरिद्रनारायण अब भी आपके दरवाजे खटखटा रहे हैं। खादी अब भी आपके हाथों विकसित होनेकी राह देख रही है । खादीके लिए दी गई थैली आपने मेरी खुशीके लिए नहीं दी है। वह आपने दरिद्रनारा- यणके नामपर और उन्हींकी खातिर दी है। इसलिए आपकी जेबपर उसका दावा बराबर बना हुआ है । तो मैं आशा करता हूँ कि आप खादीके काममें पीछे नहीं रहेंगे, आप अपना हिन्दीका ज्ञान ठीक करेंगे, क्योंकि आपके यहाँ एक हिन्दी-प्रचारक है; और आप संस्कृत भी सीखेंगे। मैं आपसे कहना चाहूँगा कि दूसरी जगहोंपर मैंने छात्रोंके सम्मुख जो-कुछ कहा है उसपर ध्यान दें, और उन भाषणोंमें जो सन्देश निहित है, उसे आप समझें ।

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, २१-९-१९२७