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२१५. भाषण : छात्र-कांग्रेसकी सभा, जफनामें

२६ नवम्बर, १९२७

आज शाम भेंट किये गये आपके सुन्दर मानपत्रके लिए मैं आपका आभारी हूँ। आपने कहा है, और ठीक ही कहा है कि इस सुन्दर द्वीपमें मुझे ले आनेका श्रेय आपको ही है । पर आपको यह भी याद रखना चाहिए कि किसी कामका श्रेय लेनेवालोंको कोई गड़बड़ी होनेकी हालतमें बदनामी भी अपने ही सिर लेनी पड़ती है।

आज शाम यहाँ आपको कोई सन्देश देना मेरे लिए थोड़ा कठिन है। इसलिए कि मुझे न तो आपकी कांग्रेसके बारेमें पर्याप्त जानकारी है और न ही मुझे यह पता है कि यहाँ इस सभामें किन-किन वर्गोंके लोग उपस्थित हैं; हाँ, आपके सुयोग्य अध्यक्षने आपकी कांग्रेसके उद्देश्य मुझे अवश्य बतला दिये हैं। इन उद्देश्योंके बारेमें ही मैं अपने कुछ विचार आपके सामने रखता हूँ ।

आपके अध्यक्षकी बात यदि मैंने ठीक-ठीक समझी है तो आपका प्रथम उद्देश्य प्राचीन संस्कृतिका पुनरुद्धार करना है। तब फिर आपको समझना चाहिए कि प्राचीन संस्कृति आखिर है क्या ? और फिर निश्चय ही वह संस्कृति ऐसी होनी चाहिए जिसका पुनरुद्धार करनेके इच्छुक हिन्दू, ईसाई, बौद्ध या कहिए, हर धर्म और विश्वासके विद्यार्थी हों। यह इसलिए कि यहाँ मैं यह मानकर चलता हूँ कि आप जब प्राचीन संस्कृतिकी बात कहते हैं तो आप केवल हिन्दू विद्यार्थियोंतक ही अपनेको सीमित नहीं रखते। मैं यह मानकर चलता हूँ कि इस छात्र संघमें हिन्दू, ईसाई, मुसलमान और बौद्ध आदि सभी धर्मोके विद्यार्थी शामिल हैं। हालांकि इस समय इसके सदस्योंमें एक भी मुसलमान या बौद्ध विद्यार्थी नहीं है, पर मेरे तर्कपर इस बातका कोई प्रभाव इसलिए नहीं पड़ता कि आपका चरम लक्ष्य तो सभीके लिए स्वराज्य हासिल करना है, जफनाके हिन्दुओं और ईसाइयों-भरके लिए नहीं। आप तो इस द्वीपमें बसनेवाली समस्त जनताके लिए स्वराज्य चाहते हैं और जफना इसका एक हिस्सा ही है। इसलिए मैंने इन विभिन्न धर्मोके विद्यार्थियोंको संघमें शामिल करनेके बारेमें जो बात कही है वह इसपर खरी उतरती है। अब इस स्थितिमें हम अपना प्रश्न लें -- हम जिसका पुनरुद्धार करना चाहते हैं वह प्राचीन संस्कृति आखिर है क्या ? इससे स्पष्ट है कि वह एक ऐसी संस्कृति होनी चाहिए जो इन सभी धर्मावलम्बियोंकी समान संस्कृति हो और जिसे ये सभी लोग स्वीकार करते हों। इसलिए निःसन्देह ही वह संस्कृति प्रधानतया तो हिन्दू संस्कृति ही होगी, लेकिन वह मात्र हिन्दू संस्कृति या विशुद्ध हिन्दू संस्कृति कदापि नहीं हो सकती। वह प्रधानतया हिन्दू संस्कृति होगी. ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ कि प्राचीन संस्कृतिका पुनरुद्धार करनेके इच्छुक आप लोग प्रमुखतया हिन्दू ही हैं, और आपको सदा ही उस