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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

और अन्तमें मेरा सुझाव यह है कि आप अपने खिलाफ काम करनेवाले लोगोंके प्रति अपने मनमें अधीरता या क्रोध नहीं लायेंगे । मुझे नहीं मालूम कि यहाँकी वस्तु- स्थिति भी भारत तथा दुनियाके अन्य हिस्सोंके ही समान है या नहीं, लेकिन मैं इतना अवश्य जानता हूँ कि भारत, इंग्लैंड और अमेरिकामें मद्यनिषेध-विरोधियोंके पक्षमें केवल सुयोग्य किन्तु सिद्धान्तहीन लेखकगण ही नहीं हैं, बल्कि शराब बनाने- वालोंकी थैलियोंके मुँह भी उनके लिए खुले रहते हैं ।

लेकिन, आपसे तो मैं यही अपेक्षा करूंगा कि जो सिद्धान्त मैंने हमारे अपने देशके सामने रखनेकी घृष्टता की है और जिसे आप भी अपनी मातृभूमि कहते हैं, यदि आप उसी सिद्धान्तके अनुसार अर्थात् सत्य और अहिंसाके सिद्धान्तके अनुसार ही चलेंगे तो इन चतुर लेखकोंके विरोधको निष्प्रभाव बना सकेंगे, भले ही उनके पीछे पैसेका बल क्यों न हो

अब मैं दलित, या कहिए शोषित वर्गोंके सम्बन्धमें कुछ कहना चाहता हूँ । उनसे दो मानपत्र पाकर मुझे बड़ी खुशी हुई। मैं यह स्वीकार करूंगा कि यह बुराई किसी भी हदतक आपके यहाँ होगी, ऐसी आशा मैंने नहीं की थी। मैं तो समझता था कि इस बुराईको आप अपनी मातृभूमिमें ही छोड़ आये हैं और इस द्वीपमें आपने एक नये अध्यायका शुभारम्भ किया है। मैंने सोचा था कि आप तो उस देशमें रहते हैं जहाँ बुद्धकी आत्मा निवास करती है और इसलिए आप अस्पृश्यताके कलंकसे मुक्त होंगे। आखिरकार गौतम हिन्दू ही तो थे । वे और कुछ नहीं, महानतम हिन्दू सुधारकोंमें से ही एक थे। इसलिए किसी भी हिन्दूको उनसे मानव-प्रेमकी शिक्षा लेनेमें लज्जाका अनुभव करनेकी जरूरत नहीं है। हम यह समझ लें कि एक भी मनुष्यको अपनेसे नीच अथवा अस्पृश्य मानना पाप है। यदि आप सर्वज्ञ और सबसे प्रेम करनेवाले ईश्वरमें विश्वास रखते हैं जैसा कि आपको रखना ही चाहिए, तो आप अपने दलित माइयोंके लिए अपने मन्दिरोंके दरवाजे तुरन्त खोल देंगे ।

दलित भाइयोंसे मैं एक बात कहना चाहूँगा। मैं नहीं जानता कि मद्यपानके सवालको स्थगित कैसे रखा जा सकता है। लेकिन यह जानता हूँ कि भारतमें बहुत-से दलित भाइयोंको शराबखोरीकी आदत लगी हुई है। यदि आपमें से किसीको यह लत हो तो मैं उम्मीद करता हूँ कि वह इसे छोड़ देगा, और अगर कोई मरे हुए पशुओंका मांस या गोमांस खाते हों तो वे हिन्दू धर्मके सच्चे अनुयायी बननेके लिए ये आदतें भी छोड़ देंगे।

अभी मेरे सामने मामूली-सी आपसी अनबनके बारेमें लिखे बहुत सारे पत्र पड़े हुए हैं। ईसाइयों और हिन्दुओंके बीच जो कुछ मतभेद हो गया है, उसे मैं ऐसी मामूली अनबन ही कहूँगा । लेकिन उसके सम्बन्धमें लिखे इन पत्रोंसे मुझे बहुत धक्का लगा है। मैं अबतक इन मतभेदोंका कारण नहीं समझ पाया हूँ । इसलिए मैं उनके बारेमें ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहता। मैं चाहूँगा कि मेरे जफनासे प्रस्थान करनेसे पूर्व ही मुझे आपसे यह सुननेको मिले कि आपने आपसमें ही इन मतभेदोंका निबटारा कर लिया है। निश्चय ही आप लोगोंका समाज इतना छोटा है कि आप