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भाषण : जफनाकी सार्वजनिक सभामें

जफना आकर तो मुझे ऐसा लगता ही नहीं कि मैं लंकामें हूँ। मुझे लगता है कि जैसे मैं भारतके ही किसी हिस्सेमें होऊँ । न आपके चेहरे और न आपकी भाषा ही मेरे लिए विदेशी हैं। यद्यपि मैं आपमें से हरएकको सूरतसे नहीं पहचान सकता, फिर भी मैं जानता हूँ कि मैं आपमें से कुछ लोगोंसे भारतमें मिल चुका हूँ ।

मेरा खयाल है इसीलिए आपने ऐसा माना कि आपको मुझपर अपना अपरिमित आतिथ्य उँडेलकर ही संतुष्ट होनेकी जरूरत नहीं है, बल्कि आप मुझसे कुछ काम भी ले सकते हैं। जब मैं लंकाके दक्षिणी और मध्य-भागोंका दौरा कर रहा था उस समय पत्रलेखकोंने मुझपर पेचीदे सवालोंकी उतनी बौछार नहीं की थी जितनी कि मेरे कोलम्बोमें रहते हुए भी जफनाके भाइयोंने अपने पत्रोंके जरिये की। उन्होंने मुझसे तरह-तरहके पेचीदे सवाल पूछे।

यह सब मैं कोई शिकायतके तौरपर नहीं कह रहा हूँ । इसमें मेरा उद्देश्य आपको यह बतलाना है कि मैं इन तमाम पत्रोंमें निहित भावनाकी कद्र करता हूँ । मैं जानता हूँ कि यह आपके इस विश्वासका द्योतक है कि आपकी अपनी कुछ-एक समस्याओंका समाधान पानेमें मैं आपकी सहायता कर सकता हूँ। यह आपके साथ मेरे मैत्री सम्बन्धका भी सूचक है, क्योंकि मित्रको ही यह विशेष अधिकार प्राप्त होता है कि वह केवल अपने मित्रका स्वागत-सत्कार करके ही न रह जाये, बल्कि उसे अपना विश्वास-भाजन भी बनाये, उसे अपनी कठिनाइयोंको दूर करनेको आमन्त्रित करे ।

मैं जानता हूँ कि पत्रलेखकोंने अपने पत्रोंमें जो सवाल उठाये हैं, उनका समाधान तत्काल आपके सामने न रखनेके लिए आप मुझे क्षमा करेंगे। उन सारे पत्रोंको ध्यानमें रखते हुए मैं इन चार दिनोंमें, जबतक मैं यहाँ रहूँगा, अपने आसपासके वातावरणसे, जहाँतक सम्भव है वहाँतक, सारे प्रश्नोंके मर्मको समझ लेना चाहता हूँ । यदि मैं ऐसा न करूँ तो मुझे पूरा विश्वास है कि जिन प्रश्नोंकी पृष्ठभूमि मुझे ठीकसे मालूम नहीं है उनके बारेमें जल्दबाजी में निर्णय देकर मैं आपके साथ भी अन्याय करूंगा और खुद अपने साथ भी ।

आपकी ग्राम समितियोंके लिए मैं आपको बधाई देता हूँ। आपके यहाँके अनेकानेक ग्राम-संगठनोंकी प्रगति तथा कार्य प्रणालीकी जानकारी देने के खयालसे आपने जो विवरण तैयार करके मुझे देनेकी कृपा की थी, उसे मैं पढ़ गया हूँ । विवरणके लेखकोंके इस विचारसे मैं सहमत हूँ कि इन ग्राम-संगठनोंका सफल संचालन निस्सन्देह स्वराज्य-प्राप्ति- की कुंजी है। मैं आपको अपना यह अनुभवगत निष्कर्ष बता दूं कि किसी भी ग्राम संगठनको सफलता अच्छे कानूनपर नहीं, बल्कि उसे चलानेवाले अच्छे लोगोंपर निर्भर करती है। इसके लिए ऐसे बहुत सारे युवकों और युवतियों, बल्कि वृद्ध लोगोंकी भी आवश्यकता होगी जो गाँवमें गहरी और व्यक्तिगत ढंगकी रुचि लें-- उतनी ही, जितनी रुचि वे अपने परिवारोंमें लेते हैं। आखिरकार राष्ट्रीयताकी सबसे सच्ची कसौटी यही तो है कि व्यक्ति सिर्फ अपने परिवारके आवे दर्जन या अपने कुनबेके सौ पचास लोगोंके बारेमें ही नहीं सोचे, बल्कि जिस समुदायको वह अपना राष्ट्र कहता है उसके हितोंको अपने निजी हितोंके ही समान समझे ।