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भाषण : कोलम्बोकी विदाई सभामें

होती है, यद्यपि आज सुबह मुझे यह जानकर बड़ी खुशी हुई कि उनकी संख्या अब ६०० से अधिक नहीं होगी। मैं जानता हूँ कि यदि भारत बुद्धके सन्देशको और महेन्द्रको आपके देशमें भेजनेके लिए गर्व कर सकता है तो आपको जाति-भेदके अभिशापसे अभिशप्त करनेके लिए उसे लज्जाका भी भागी बनना है। कितना अच्छा हो कि आप भारतसे बौद्ध धर्मके तत्त्वोंको, यदि वे आज भी वहाँ मौजूद हों तो, अधिकाधिक ग्रहण करें और उस महान् देशसे आपको जो अभिशाप मिला है, उसे त्याग दें।

इसी तरह, जहाँतक मैंने बौद्ध धर्मका अध्ययन किया है और लोक-मतका प्रति- निधित्व करनेवाले जाने-माने लोंगोसे बातचीतकी है, आपके बीच मद्यपानके अभि- शापके अस्तित्वका कोई आधार मुझे दिखाई नहीं देता। यह देखकर मुझे बड़ी खुशी हुई है कि आपको ऐसा अधिकार है कि यदि किसी खास इलाकेके लोग चाहें तो वहाँ मद्यनिषेध किया जा सकता है और आप इस अधिकारका लाभ भी उठा रहे हैं। लेकिन, मेरा यह दुःखद अनुभव रहा है कि इस विनाशकारी अभिशापको किसी ऐसे-वैसे तरीकेसे दूर नहीं किया जा सकता और न इसके प्रति वीरजसे काम लेनेकी ही गुंजाइश है। इसलिए मैं आपसे नम्रतापूर्वक अनुरोध करूंगा कि इस दिशामें अपने प्रयत्नोंमें आप अधिक गति लाइए और इस देशको इस जबरदस्त बुराईसे, जो कमसे-कम श्रमिक वर्गकी शक्ति और नैतिकताका विनाश कर रही देशको छुटकारा दिलाइए। और यह आशा तो मैं करता ही हूँ कि आप विदेशी शराबके साथ भी कोई रियायत नहीं करेंगे। मुझे मालूम है कि वह भी उतनी ही नुकसानदेह होती है, जितनी कि देशी शराब । जहाँतक मैं खुद परिस्थितियोंका अध्ययन कर सका हूँ और मद्यनिषेधकी समस्याका अनुभव रखनेवाले डाक्टर मित्रोंसे विचार-विमर्श कर सका हूँ, मुझे तो इसमें कोई सन्देह नहीं दिखाई देता कि हम समशीतोष्ण कटिबन्धमें रहनेवाले लोगोंके लिए मद्यपानका कोई कारण नहीं है।

अब मैं एक-दो वाक्य चरखेके सन्देशके बारेमें, जहाँतक वह आपपर लागू होता है, कहूँगा। मैं जानता हूँ और यह जानकर मुझे बड़ी खुशी होती है कि आप लोग उस तरहको कष्टकर गरीबीसे अनभिज्ञ हैं जो भारतमें व्याप्त है और जिसके कारण करोड़ों लोगोंको प्रतिदिन भूखा रहना पड़ता है। इसलिए चरखेका आपके लिए शायद कोई आर्थिक महत्त्व न हो, लेकिन मुझे इसमें कोई सन्देह नहीं दिखाई देता कि इस सुन्दर देशके लिए इसका सांस्कृतिक महत्त्व बहुत अधिक है। सादगीका इसका जीवन्त सन्देश सभी देशोंपर लागू होता है, और आप यह स्वीकार करेंगे कि यदि आपके यहाँ लड़के-लड़कियाँ, बल्कि स्त्री-पुरुष भी प्रतिदिन एक घंटा खुद काता करें और यदि आप अपनी वस्त्र-सम्बन्धी आवश्यकताओंकी हदतक स्वावलम्बी और आत्म- निर्भर बन जायें तो उससे आपको कोई हानि तो नहीं ही होगी, ऊपरसे इस राष्ट्र के गौरव और आत्म-विश्वासकी अभिवृद्धि होगी।

फैशनके प्रति लोगोंके मोहको मैं बड़े चिन्तातुर मनसे देखता रहा हूँ। आपके यहाँके उच्चतर वर्गोंके युवक-युवतियोंमें फैशनपरस्ती बहुत आ गई है। पश्चिमके इस चकाचौंधमें डाल देनेवाले सम्मोहनके चक्करमें पड़कर वे अपने-आपको देशके गरीब