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२१३. भाषण : कोलम्बोकी विदाई सभामे

२५ नवम्बर, १९२७

अध्यक्ष महोदय और भाइयो,

आपने मेरे बारेमें जो शब्द कहे हैं और स्वयं अपनी ओरसे तथा कोलम्बोके नागरिकोंकी ओरसे जो शुभकामनाएँ व्यक्त की हैं, उनके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। इस बड़ी थैलीके लिए भी आपको धन्यवाद देता हूँ। वैसे तो अभी जितने रुपयोंकी थैलीकी घोषणा की गई, वह रकम अच्छी खासी है, लेकिन मैं जानता हूँ और आपको भी जानना चाहिए कि कोलम्बोके नागरिकोंने केवल यही नहीं और भी बहुतसी थैलियाँ मुझे सहर्ष भेंट की हैं। मैं जबसे कोलम्बोमें हूँ, धीरे-धीरे एकके बाद एक बहुतसी संस्थाएँ और व्यक्ति मुझे थैलियाँ भेंट करते रहे हैं - सिर्फ सार्वजनिक रूपसे ही नहीं, बल्कि मेरे निवास स्थानपर आकर व्यक्तिगत रूपसे भी भेंट करते रहे हैं। इस तरह वे खासी रकमें देते रहे हैं और इन सभी अनुदानोंको मैं इसी थैलीका हिस्सा मानता हूँ ।

एक तरहसे मेरी लंका यात्रा आज समाप्त होती है, हालाँकि ठीक-ठीक देखें तो आपके इस आतिथ्य-भावनासे आपूरित देशसे मैं २९ तारीखको जफनासे प्रस्थान करूँगा। जफना जाते हुए पता नहीं क्यों, मुझे कुछ ऐसा लग रहा है जैसे मैं एक अलग स्थानको जा रहा हूँ। मैं यहाँसे अपने साथ लंकाकी अति सुन्दर जलवायु और यहाँके लोगोंकी सुखद स्मृतियाँ लेकर जा रहा हूँ। सच मानिए, कोलम्बोसे जाते हुए मेरा मन बड़ा उदास हो रहा है और यदि मुझसे बनता तो निश्चय ही मैं यहाँ ज्यादा दिन ठहरता । लेकिन मुझे उड़ीसाका दौरा करना है। यह भारतके सबसे अधिक दुखी प्रदेशोंमें से एक है, बल्कि कहिए कि यह वहाँका सबसे अधिक दुखी प्रदेश है। इन दिनों उसपर बहुत जबरदस्त बाढ़का कोप हुआ है। इसलिए, मैं वहाँ जानेका कार्यक्रम स्थगित नहीं कर सकता ।

परमश्रेष्ठ गवर्नर महोदयसे लेकर छोटेसे-छोटे सरकारी कर्मचारीतक में और बड़े-बड़े व्यापारियों तथा अन्य पूंजीपतियोंसे लेकर गरीबसे गरीब मजदूर तकके हृदयमें मैंने अपने प्रति अगाध स्नेहका अनुभव किया है, और महोदय, आपने सच ही कहा है कि इस देशके सभी जातियों और रंगोंके लोगोंने एक होकर मुझपर असीम स्नेहकी वर्षा की है, और जहाँतक मेरे यहाँ आनेके उद्देश्यका सम्बन्ध है, आपने निश्चय ही, आपसे जो भी आशाएँ की जाती थीं, सब पूरी की हैं।

आपने कहा है कि मैं दुबारा अवकाशका समय बितानेके लिए लंका आऊँ । यदि ईश्वरने मुझे अवकाशका समय सुलभ कराया और उसकी कृपासे मैं तबतक जीवित रहा तो आप विश्वास मानिए कि मुझे यहाँ बुलानेके लिए आपको ज्यादा कहने-सुननेकी जरूरत नहीं होगी। लेकिन, चाहे मैं इस सुन्दर द्वीपमें दुबारा आ