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भाषण : बौद्ध युवक संघ, कोलम्बोमें

जिन जानवरोंका मांस आप खाते हैं उनका वध किसी और ने किया, इसलिए आप उनके बघके पापके भागी नहीं हैं, तबतक यह नहीं माना जायेगा कि आप सभी प्राणि- योंको अवध्य मानते हैं। आप परम्पराओंकी आड़ लेते हैं। आप कहते हैं कि भगवानने कमी भी मांस-भक्षणका निषेध नहीं किया । मैं ऐसा नहीं मानता। यदि आप भगवानके उपदेशोंको मेरे बताये दृष्टिकोणसे देखेंगे और परम्पराकी भावनापर गहराई- से विचार करेंगे तो आपको एक नई दृष्टि और नया अर्थ मिलेगा । तब आप देखेंगे कि जब भगवानने यह कहा कि “मैं आपको मांस-भक्षणसे नहीं रोकता", तब वे वास्तवमें यह बात उन लोगोंसे कह रहे थे जिन्हें ईसाइयोंकी भाषामें हम कठोर हृदय (हार्ड ऑफ हार्ट) कहेंगे। उन्होंने उनकी कमजोरीका खयाल करके ही उन्हें मांसाहार- की अनुमति दी; उन्होंने ऐसा कुछ इसलिए नहीं किया कि वे अपने उपदेशके तर्कसंगत परिणामसे अनभिज्ञ थे। यदि देवताओंको पशुबलि नहीं दी जा सकती थी तो हम स्वाद-लोलुप प्राणियोंके लिए उनकी बलि कैसे चढ़ाई जा सकती थी ? जब उन्होंने पशु- बलिका निषेध किया तो वे जानते थे कि वे क्या कह रहे थे। क्या वे नहीं जानते थे कि पशुओंकी बलि आखिरकार मनुष्योंके खानेके लिए ही दी जाती है ? कलकत्ते में लोग कालीको हजारों भेड़-बकरियाँ क्यों बलि चढ़ाते हैं ? उस परम हिन्दू गौतमका सन्देश ग्रहण करनेके बाद भी वे ऐसा काम क्यों करते हैं जो स्वयं उनके लिए और हिन्दूधर्मके लिए कलंक रूप है ? क्या वे बलि चढ़ाये पशुओंके शरीर हुगलीमें फेंक देते हैं? नहीं, वे मांसकी बोटी-बोटी बड़े चावसे चबा जाते हैं और यह समझते हैं कि काली- को भेंट कर दिये जानेके कारण यह मांस पवित्र हो गया है। इसलिए बुद्धने कहा था, यदि तुम बलिदान ही करना चाहते हो तो खुद अपनी अपनी वासनाओंकी और आर्थिक तथा सांसारिक आकांक्षाओंकी बलि चढ़ाओ । यह मनुष्यको ऊपर उठानेवाला बलिदान होगा। मेरी यही कामना है कि भगवान बुद्ध आपको मेरे शब्दोंको तौलने और उनका सार ग्रहण करनेकी सद्बुद्धि दें।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, ८-१२-१९२७