पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 35.pdf/३५२

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३२४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सत्यको पानेके लिए जीवन अर्पित कर दिया, और जिनकी अस्थियाँ हिमालयकी सफेद बर्फमें मिलकर एकाकार हो गई हैं, उन्होंने ये निधियाँ सिर्फ भारतके तीस करोड़ लोगोंके लिए ही नहीं छोड़ी हैं, बल्कि ये निधियाँ उन सबकी हैं जो उन्हें समझनेकी कोशिश करें। और फिर उन्होंने स्वयं ही कहा, "सत्य क्या है, यह हम आपको नहीं बता सकते ।" यह न लिखकर बताया जा सकता है, न बोलकर, इसे तो जीवनके द्वारा ही जाना जा सकता है। यह बुद्धिसे परे है, लेकिन अनुभवसे परे नहीं है। इसलिए उन्होंने कहा, "हमारा कहना है कि तथ्य इस प्रकार हैं, लेकिन उनकी परख तो आपको स्वयं करनी पड़ेगी। आप अपनी बुद्धिका उपयोग करें। हम आपकी बुद्धिको कुण्ठित नहीं करना चाहते। लेकिन यदि आप इस तरह चीजोंको स्वयं परखने बैठेंगे तो मेरे इस निष्कर्षसे अवश्य सहमत होंगे कि ईश्वरने हमें जो बुद्धि दी है, आखिरकार उसकी शक्ति भी सीमित है, और जो सीमित है, वह असीमको नहीं पा सकता। इसलिए इन प्रारम्भिक शर्तोंका पालन कीजिए, भले ही ये शर्तें कठिन और थकानेवाली हों, ज्यामिति और बीजगणित सीखनेकी इच्छा करनेवालेके समान ही आपको भी इन प्रारम्भिक प्रक्रियाओंसे गुजरना ही है। आप उनका मनन कीजिए और तब आप देखेंगे कि हम आपसे जो-कुछ कह रहे हैं, आपका भी वही अनुभव है।

अब मैं आपको इस बातका सिर्फ एक उदाहरण दूंगा कि आज किस प्रकार बुद्धके उपदेशोंकी उपेक्षा की जा रही है। इस विषयपर लगभग अन्त-अन्ततक मैंने अपना मुँह बन्द रखा है। हाँ, विद्योदय कालेजमें दिये गये भाषणमें मैंने इसका कुछ संकेत अवश्य किया था ।

आप यह मानते हैं कि गौतमने दुनियाको यह सिखाया कि हमें सृष्टिके तुच्छतम प्राणीको भी अपने बराबर समझना चाहिए। वे धरतीके कीड़े-मकोड़ोंकी जिन्दगीको भी अपनी ही जिन्दगीके समान बहुमूल्य मानते थे । यह कहना थोथा अहंकार है कि मनुष्य सृष्टिके सभी प्राणियोंका स्वामी है। इसके विपरीत, चूंकि ईश्वरने मानव जीवनको कुछ महत्तर उपादानोंसे युक्त कर रखा है, इसलिए वह अपनेसे हीनतर प्राणियोंका न्यासी है; और महात्मा बुद्धने इस सत्यको अपने जीवनमें चरितार्थ किया । लाइट ऑफ एशिया' में मैंने किशोरावस्थामें ही पढ़ा था कि किस प्रकार उन्होंने उन अज्ञानी ब्राह्मणोंके सामने ही, जो समझते थे कि निर्दोष मेमनोंका रक्त भेंट करके वे ईश्वरको प्रसन्न कर रहे हैं, मेमनेको अपने कन्धोंपर उठा लिया और उन्हें चुनौती दी कि अब एक भी मेमनेकी बलि चढ़ा कर दिखाओ। उनकी उपस्थिति मात्र से ब्राह्मणोंके कठोर हृदय पिघल गये। उन्होंने भगवान बुद्धकी ओर देखा और अपने घातक छुरोंको तुरन्त फेंक दिया। इस प्रकार सभी जानवरोंकी जानें बच गईं। उन्होंने दुनियाको यह सन्देश क्या इसीलिए दिया था कि वह उसे झुठलाये, जैसाकि आज वह कर रही है? मैं मानता हूँ कि जबतक आप लोग, जो कि उस महान धर्मके थातीदार हैं, सृष्टिके समस्त प्राणियोंको अवध्य नहीं मानते तबतक आप महात्मा बुद्धके उपदेशोंकी भावनाके प्रति ईमानदारी नहीं बरत रहे हैं; और जबतक आप मांसाहार- का त्याग नहीं कर देते और इस भ्रामक विश्वासको मनमें कायम रखते हैं कि चूंकि