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२०५. भाषण : गैलेकी सार्वजनिक सभामें

२३ नवम्बर, १९२७

अध्यक्ष महोदय और भाइयो,

अभी आप लोगोंने मुझे जो मानपत्र और चन्देकी राशियाँ भेंट की हैं, उनके लिए मैं आपका आभारी हूँ ।

इस सुन्दर द्वीपकी धरतीपर मैंने जबसे पैर रखे हैं तभीसे मैंने इसे अपने प्रति स्नेह और आतिथ्यकी भावनासे आपूरित पाया है और आप लोग मुझपर प्रेम और मेच्छाओंकी वर्षा करते रहे हैं। अभी इन बालकों और बालिकाओंने जिस शुभकामना गीतका गायन किया उसे मैं आपकी शुभेच्छाके प्रदर्शनके इस क्रममें कोई कम महत्त्वपूर्ण स्थान नहीं देता। कुछ मिनट पहले आपकी नगरपालिकाने भी मुझे एक मानपत्र भेंट किया है और मैं पूरी योग्यतासे इन दोनों अभिनन्दनपत्रोंका संयुक्त रूपसे उत्तर देना चाहता हूँ । लेकिन मैं जानता हूँ कि यदि मैं उत्तर यथासम्भव अधिकसे-अधिक संक्षेपमें दूं तो आप उसके लिए मुझे धन्यवाद ही देंगे। मैं उत्तर संक्षेपमें ही दूंगा, क्योंकि मैं आपको ज्यादा समयतक इस धूपमें रोके रहना नहीं चाहता।

मुझे जो कुछ इस नगरके आप नागरिकोंसे कहना है, नगरपालिकाके पार्षदोंसे उससे कोई भिन्न बात नहीं कहनी है ।

जिस आशाको मैं इस द्वीपमें आनेके दिनसे ही बार-बार व्यक्त कर रहा हूँ, उसीको यहाँ एक बार फिर व्यक्त करना चाहता हूँ ।

मुझे आशा है कि आप लोग अपनेको मद्यपानके अभिशापसे मुक्त करने और इस द्वीपसे जातीय भेद-भावको मिटा देनेके लिए कुछ भी उठा नहीं रखेंगे। गौतम बुद्धने, जिनका जीवन सतत त्यागकी एक गाथा है, यह उपदेश दिया है कि उनके अनुयायियोंको शराबसे अपने मुँह दुर्गन्धित और शरीर विषाक्त नहीं करने चाहिए । इस्लामने शराबकी निन्दा स्पष्ट शब्दोंमें की है। और जहाँतक ईसाई धर्मको मैंने समझा है, ईसाई धर्मके सिद्धान्तमें शराब पीनेका समर्थन कहीं नहीं किया गया है; और एक हिन्दूके नाते तो मैं व्यक्तिगत रूपसे आपको इस बातका प्रमाण दे सकता हूँ कि मेरे धर्ममें मद्यपानको पाप माना गया है।

आप अपनी मातृभूमिसे इस द्वीपमें भी साम्प्रदायिकताका अभिशाप ले आये हैं, लेकिन मैं आशा करता हूँ कि जहाँतक ईश्वर और मानवताके लिए काम करनेका सम्बन्ध है, आप अपने देशकी भलाईके लिए एक ही मातृभूमिकी सन्तानोंकी तरह एक दूसरेके कन्धेसे-कन्धा मिलाकर काम करेंगे । भगवान् बुद्धकी उदात्त शिक्षाके साथ- साथ आप अपने देश भारतसे जातीय भेदभावको भी यहाँ ले आये हैं। जबतक आप इन भेद-भावोंको बरतते रहेंगे तबतक यह नहीं माना जायेगा कि आपने बुद्धकी शिक्षाको समग्र रूपसे अंगीकार कर लिया है। आज दुनियामें लोकतन्त्रकी जो भावना फैली