२०४. भाषण : पानडुरामें
२३ नवम्बर, १९२७
महात्माजीने पहले श्री आर्थर वी० डायसको ढूंढ़ा, मगर वे सभामें नहीं आये थे। इसके बाद उन्होंने कहा कि मेरी बड़ी इच्छा है कि पानडुरामें मद्य-निषेध आन्दोलनके जनकसे मुलाकात करूँ। मैंने मद्य-निषेधके लिए काम करनेवाले इन सज्जनके बारेमें पहलेसे सुन रखा है और मेरा खयाल है कि वे उसी भावनासे काम कर रहे हैं, जिस भावनासे में करता हूँ। मुझे आशा है कि पानडुराकी जनता मद्य-निषेधके लिए और भी प्रयत्न करेगी ।
यदि आप वैसा करेंगे तो न केवल वर्तमान पीढ़ीकी कृतज्ञताके पात्र होंगे, बल्कि भावी पीढ़ियाँ भी आपका आभार मानेंगी। मुझे अनेक स्थानोंपर पियक्कड़ोंके बीच रहनेका मौका मिला है। मैंने मद्यपानकी बुराईके बारेमें बहुत सारा साहित्य पढ़ा है। मैं ऐसे घरोंको जानता हूँ जो इस बुराईके कारण उजड़ गये हैं। ऐसे लोगोंको, प्रति- ष्ठित लोगोंको, जानता हूँ जो इसके चक्करमें पड़कर बर्बाद हो गये हैं। मैंने मद्यप पतियोंको अपनी पत्नियोंके साथ राक्षसी व्यवहार करते देखा है। शराबके नशेमें धुत एक कप्तान तो एक बार एक जहाजके सभी कर्मचारियोंको मौतके ही मुँहमें झोंकने जा रहा था। मैं खुद उस जहाजपर मौजूद था। आप लोग तो गर्म जलवायुमें रहते हैं इसलिए आप शराब पियें, इसका कोई कारण नहीं है। यह राक्षसी वृत्ति है, ईश्वर और मानवताके प्रति जघन्य अपराध है। इसके घातक प्रभावसे महान श्रमिक वर्ग अधिकाधिक बेकार होता जा रहा है। फिर लंकामें अस्पृश्यता भी है, यहांतक कि बौद्धोंके बीच भी ।
उन्होंने कहा, किन्हीं कैण्डी निवासी सज्जनने मुझे बताया था कि बौद्धोंके बीच भी अस्पृश्यता रूपी यह बुराई मौजूद है, यद्यपि अस्पृश्यता बौद्ध धर्मके बिलकुल खिलाफ है।
आप चाहे अस्पृश्यताको जो नाम दें, यह चीज बहुत बुरी है। बौद्ध धर्ममें तो पशुओंके प्रति भी दयाका व्यवहार करनेकी शिक्षा दी गई है, इसलिए उसमें इसके लिए कोई स्थान नहीं है ।
सीलोन डेली न्यूज, २५-११-१९२७