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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

होता कि "मैं करता हूँ"। उसमें द्वेषभाव नहीं होता। उसमें दूसरोंके प्रति उदारता होती है। अपने मनसे बार-बार यह पूछती रहो कि तुम्हारे छोटेसे-छोटे हरएक काममें यह सब होता है या नहीं।

मैंने अपने बारेमें जो लिखा था, उसपर रमणीकलालभाईने प्रश्न उठाया था। मैंने उसका जो जवाब दिया, वह तुम सबकी समझमें आया या नहीं, इसके बारे में तुमने कुछ नहीं लिखा। मैं चाहता हूँ कि मैं जो-कुछ लिखता हूँ उसकी चर्चा करो, और उसके सम्बन्धमें जो सवाल खड़े हों वे मुझसे पूछो। मेरा स्वास्थ्य अभी तो काम दे रहा है ।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (जी० एन० ३६६५) की फोटो-नकलसे ।

६. पत्र : हरिभाऊ उपाध्यायको

मौनवर[१९ सितंबर,१९२७]

[१]

भाई हरिभाऊ,

आपका पत्र मिला है। यदि स्वामी और जमनालालजी सम्मत है तो मैं भी हुं । समयपर कैसे हिंदी न. जी.[२] तैयार हो सकता है, मैं नहीं समजता । परन्तु इसकी फिकर मुझे न होनी चाहीये ।

मार्तण्डका स्वास्थ्य कैसा रहता है ?

बापूके आशीर्वाद

[ पुनश्च : ]

आपका खत पढ़नेसे देखता हूं-- दो बात रह गई है। खादी लेखके बारे में पीछेसे लोखुंगा ।

मेरा आश्रम में आना जानेवारी मास में होगा। अजमेरके नजदीक आश्रम खोलनेका ख्याल अच्छा है।

बापू

भाई हरिभाऊ उपाध्याय

खादी कार्यालय

अजमेर
सी० डब्ल्यू० ६०५८ की प्रतिसे ।
सौजन्य : हरिभाऊ उपाध्याय
  1. १. डाककी मुहरसे।
  2. २. हिन्दी नवजीवन ।