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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इन कतैयोंके पीछे कई हजार बुनकरोंका भी उद्धार हो गया है, और धोबियों- का भी जिनका विशेष काम खादीको धोना है। रंगसाजों, छपाई करनेवालों और व्यापारियोंको भी काम मिला है।

१,९०० मील लम्बे और १,५०० मील चौड़े इस विशाल क्षेत्रमें करीब १,००० क्लर्क वर्गके कर्मचारियोंको रोजगार मिला हुआ है जो प्रतिमाह २० से ३० रुपये या ४० रुपये तक कमाते हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो ७५ रुपये या १५० रुपये प्रतिमाह भी कमाते हैं, लेकिन इनकी संख्या बहुत कम है। इन सबके ऊपर अवैतनिक कार्य- कर्ताओंका एक दल है जो कुछ भी वेतन नहीं पाते लेकिन जो सेवाके भावसे काम करते हैं। सभी प्रान्तीय कार्यालयों और उप-प्रान्तीय कार्यालयोंका भी निरीक्षण होता है और उनके लिए नियमित हिसाब-किताब रखना जरूरी है जिसकी समय-समयपर जाँच होती है ।

इस संघके जरिये पिछले साल २० लाख रुपयेसे ऊपरकी खादी तैयार हुई और बेची गई थी। यह काम कितना ही बढ़ाया जा सकता है बशर्ते हमें पहले कार्य- कर्त्ता मिलें और फिर रुपया मिले। ५-६ सालके अनुभवसे हमने जाना है कि यदि हमें लोगोंसे पर्याप्त आर्थिक सहायता प्राप्त हो, खुशीसे खरीदनेवाले खरीदार मिलें और यदि हमें योग्य कार्यकर्त्ता मिलें तो हमारे लिए भारतमें समस्त ७,००,००० गाँवोंकी सेवा कर सकना केवल समयकी बात रह जायें। इसीलिए मैं इसे संसारका सबसे बड़े पैमानेपर होनेवाला सहकारी प्रयत्न कहने में नहीं हिचकता ।

मैंने जो परिणाम गिनाये हैं यद्यपि वे सन्तोषजनक हैं लेकिन वे कामकी दृष्टिसे या जो उद्देश्य मेरी दृष्टिमें है उसके लिहाजसे बहुत अच्छे अथवा बिलकुल पर्याप्त नहीं है। लेकिन इसमें देर इतनी ही है कि भारतके लिए आपकी तरह महसूस करनेवाले सभी लोग इस काममें विश्वास करने लगें। इससे मेरे अहंकी तुष्टि हो सकती है, लेकिन मैं जानता हूँ कि जबतक मुझे लोगोंसे खादीके सिद्धान्तको स्वीकार करानेके लिए और उन्हें अपना फाजिल पैसा निकालनेके लिए राजी करनेके हेतु दौरे करने पड़ते हैं तबतक इस स्थितिको सन्तोषजनक नहीं समझा जा सकता । यदि आप पैसा इकट्ठा करने और खादीके लिए ग्राहक ढूंढ़नेका काम मेरे कन्धेपर से उतार दें और अपने ऊपर ले लें तो मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि इन गांवोंको संगठित करने और आपको सर्वोत्तम किस्मकी तथा सस्तीसे-सस्ती खादी देनेके लिए एक प्रवीण कतैयेके रूपमें मैं अपनी प्रतिभाका इस्तेमाल कर सकता हूँ ।

मैं जानता हूँ कि आप सब क्षण-मरमें ही निपुण कतैये नहीं बन सकते, लेकिन खादीके ग्राहक बनकर और धन इकट्ठा करनेवाले बनकर आप खादी-विशेषज्ञ जरूर बन सकते हैं। मुझे यह बात अच्छी तरहसे मालूम है और मुझे इसका दुख है कि देश मुझे धनकी खोजमें और खादीके लिए ग्राहकोंकी खोजमें जगह-जगह भटकने पर मजबूर करके मेरी योग्यताओंका अलाभकारी उपयोग कर रहा है ।

मैं आपसे इस प्रकार दिल खोलकर जो बात कर रहा हूँ वह महज इस कारण कि तमिलनाडुके अपने दौरेमें, जहाँसे मैं यहाँ आया हूँ, और जहाँके आप लोग रहनेवाले