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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

एक बार ऐसा संकल्प कर लेनेपर मनमें विश्वास पैदा हो जाता है और विश्वासके साथ ही धैर्य भी आ जाता है, क्योंकि तब आप जान जाते हैं कि इससे बेहतर या छोटा रास्ता दूसरा है ही नहीं ।

मुझे आशंका है कि हिन्दुस्तानकी तरह आपका समाज भी अलग-अलग सम्प्र- दायों और गुटोंमें बँटा हुआ है। आज ही मैंने साम्प्रदायिकताके समर्थनमें कहीं कुछ सरसरी तौरपर पढ़ा था । हिन्दुस्तानमें भी हम इस अभिशापसे पीड़ित हैं। हम इसे अभिशाप ही समझते हैं, इसकी तारीफ नहीं करते। जो साम्प्रदायिकतामें विश्वास करते हैं वे भी खुलासा कहते हैं कि यह अनिवार्य दोष है और जितनी जल्दी हो, इससे पिण्ड छुड़ाना ही होगा।

हिन्दुस्तानमें हमें तीस करोड़ आदमियोंसे काम पड़ता है, मगर यहाँ तो जन-संख्या इतनी कम है कि मुझे आपके यहाँ साम्प्रदायिकताका समर्थन -- इतना जोरदार समर्थन सुनकर कष्ट और आश्चर्य दोनों हो रहा है। पर मैं जानता हूँ कि यह राष्ट्रीयता के बिलकुल विरुद्ध है। आप स्वराज्य प्राप्तिकी इच्छा करते हैं, और करनी चाहिए भी । स्वराज्य किसी एक ही देशका नहीं, बल्कि सभी देशोंका - मुझे कहना चाहिए कि सर्वाधिक सभ्य जातियोंकी तरह ही वन्य जातियोंका भी जन्मसिद्ध अधिकार है। तब फिर उनका तो पूछना ही क्या जो संस्कृतिके मामलेमें संसारके किसी भी देशसे पीछे नहीं हैं, जिन्हें प्रकृतिने वह सब-कुछ दिया है जो वह दे सकती थी, और जिनके पास घन, जन और नैसर्गिक उपहारकी सम्पदा है और जिसके बलपर आप संसारके सबसे शक्तिशाली देशों में से एक बन सकते हैं, मगर तब भी इस समय आप स्वराज्यसे बहुत दूर मालूम पड़ते हैं।

मैं यह कल्पना भी नहीं कर सकता कि आपमें कोई ऐसे भी होंगे जो इस विश्वास- से अपने मनको भरमा लेते होंगे कि आज उनको शासनके जो अधिकार मिल गये हैं वे स्वराज्यकी मेरी परिभाषाके अनुरूप हैं। और जबतक आपका समूचा राष्ट्र एक स्वरसे नहीं बोलता - ईसाई, मुसलमान, बौद्ध, हिन्दू, यूरोपीय, सिंहली, तमिल और मलायीके स्वरोंमें नहीं तबतक आपको वह स्वराज्य नहीं मिलेगा; मैं कहने जा रहा था कि तबतक आप वैसा स्वराज्य प्राप्त कर ही नहीं सकते। मैं इसे मान ही नहीं सकता।

महोदय, आपने कहा था कि आप सभी जातियों और धर्मोका प्रतिनिधित्व करते हैं। मैं इसके लिए आपको बधाई देता हूँ। अगर आप इस दावेको साबित कर सकें तो आप बड़ेसे-बड़े सम्मानके अधिकारी हैं और तब आपकी कांग्रेस संस्था ही नहीं, बल्कि आप भी इस योग्य हैं कि हम आपका अनुकरण करें। हमारी संस्था पुरानी है, फिर मी मुझे शर्मके साथ कबूल करना पड़ता है कि हम ऐसा दावा नहीं कर सकते । हम प्रयत्न कर रहे हैं, हम अन्धेरेमें राह टटोल रहे हैं, हम प्रान्तीयताको दबानेकी कोशिश कर रहे हैं; हम जातीयताको दबाते हैं, अगर मैं नया शब्द बनाऊँ तो हम धर्मवादको दबाते हैं और हम राष्ट्रीयताका पूर्ण रूपसे विकास करनेकी कोशिशमें हैं। लेकिन आपके सामने यह स्वीकार करते हुए मैं शर्मिन्दा हूँ कि फिर भी हम