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भाषण : लंकाकी राष्ट्रीय कांग्रेसके कोलम्बो अधिवेशनमें

इसलिए कि उनके जीवनकी मुख्य प्रेरक शक्ति थी, 'राजनीतिको धर्ममय बनाने की उनकी उत्कट अभिलाषा । (मैं उनके सबसे अधिक निकट पहुँचा था और मैं यही समझा हूँ ।) 'भारत सेवक समाज' (सर्वेन्ट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी) के जिसके वे संस्थापक और प्रथम अध्यक्ष थे, उद्देश्य और कार्य विवरणकी भूमिकामें उन्होंने ये ही शब्द लिखे थे। उन्होंने खूब समझ-बूझकर बिलकुल स्पष्ट लिखा है कि मैं राजनीतिको धर्ममय बनानेके लिए ही यह संस्था स्थापित कर रहा हूँ। उन्होंने केवल अपने आस- पास, सिर्फ अपने देशकी राजनीतिका ही अध्ययन नहीं किया था, बल्कि वे समूचे इतिहासके बड़े ही सूक्ष्मदर्शी और सतर्क जिज्ञासु थे। उन्होंने संसारके सभी देशोंकी राजनीतिका अध्ययन किया था, और उन्हें यह देखकर गहरी निराशा हुई थी कि आध्यात्मिकता या धर्मनीतिका राजनीतिसे कहीं कोई सरोकार ही नहीं है। इसलिए उन्होंने अपनी सारी शक्ति लगाकर राजनीतिमें धर्मनीतिका प्रवेश करानेका प्रयत्न किया और मैं कहूँगा कि इसमें उन्हें कुछ सफलता - मैं कहने जा रहा था कि काफी सफलता मिली थी। इसीलिए उन्होंने अपनी संस्थाका नाम भारत सेवक समाज रखा था। आज वह समाज अनेक प्रकारसे देशकी सेवा कर रहा है।

पता नहीं आपको ये बातें रुचती भी हैं या नहीं, मगर मुझे अगर अपनी इस छोटी-सी यात्राके दौरान की गई आपकी कृपाओके प्रति सचमुच कृतज्ञता प्रकट करनी है तो मैं वही कहकर कर सकता हूँ जो कुछ मुझे सच मालूम होता है, आपको महज खुश करनेके लिए मैं मुँह-देखी बातें नहीं कह सकता। आपको पता होगा कि यह खास चीज सत्य हमारी कांग्रेसके सिद्धान्तका अनिवार्य अंग है। इसलिए हमारा सिद्धान्त है वैध और शान्तिमय तरीकोंसे स्वराज्य प्राप्त करना ।

आप देखेंगे कि मैं इस बात पर जोर देनेसे कभी नहीं थकता कि चाहे जो हो मगर सत्य और अहिंसापर हमें दृढ़ रहना चाहिए। मेरी विनम्र सम्मतिमें, अगर ये दोनों शर्तें पूरी हो जायें तो आप दुनियाकी किसी भी शक्तिका मुकाबला कर सकते हैं और अन्तमें न सिर्फ यही कि आपका कुछ भी नहीं बिगड़ेगा, बल्कि आपके उस तथाकथित विरोधीका भी बाल तक बाँका नहीं होगा। हो सकता है कि वह कुछ समयतक आपके अहिंसापूर्ण प्रहारोंका मतलब न समझ सके, वह आपके बारेमें गलत- फहमी भी फैलाये, मगर जबतक आप इन दोनों शर्तोंका दृढ़ताके साथ पालन करते रहते हैं, आप सत्य और अहिंसापर दृढ़ हैं, तबतक आपको उसकी राय या भावनाओंकी ओर देखनेकी जरूरत नहीं। तब आपके कार्योंका फल ठीक ही निकलेगा और आप इस तरीकेसे अन्य किसी भी तरीकेकी अपेक्षा अधिक तेजीसे आगे बढ़ सकेंगे। यह रास्ता देखनेमें लम्बा मालूम पड़ सकता है, मगर यदि आप लगातार मेरे ३० सालके अनुभवका विचार करें तो मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि सफलताके लिए यही रास्ता सबसे छोटा है। मैं इससे छोटा कोई रास्ता नहीं जानता। मैं जानता हूँ कि अकसर इसके लिए अविचल विश्वास और अपार धैर्यकी जरूरत पड़ती है, पर यदि यही एक बात हमारे दिलमें गहरी बैठ जाये तो फिर जो राजनीतिज्ञ, अपनी नहीं, पूरे देशकी सेवा करना चाहता है, उसके लिए दूसरा कोई रास्ता नहीं रह जाता ।

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