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भाषण : लंकाकी राष्ट्रीय कांग्रेसके कोलम्बो अधिवेशनमें

ऐसी छाप छोड़ गये हैं जो कभी मिट नहीं सकती। मगर आपके पास और मेरे पास भी समय इतना कम है कि इस अत्यन्त रोचक विषयकी ज्यादा चर्चा करना मुझे उचित नहीं जान पड़ता। इसलिए मैं अब कांग्रेससे सम्बन्धित सांसारिक समस्या- ओंको ही ले रहा हूँ ।

आज हिन्दुस्तानकी कांग्रेसके नाम एक जादू-जैसा असर पैदा हो गया है। इस संस्थाके पीछे ४० वर्षोंका अनवरत इतिहास है। और आज हिन्दुस्तानमें इसकी जितनी इज्जत है, उतनी किसी दूसरी राजनीतिक संस्थाकी नहीं है। और यह भी इतने सारे उतार-चढ़ावोंके बावजूद बनी हुई है जिनमेंसे होकर कांग्रेसको, संसारकी अन्य सभी राजनीतिक संस्थाओं और दलोंकी भाँति ही, गुजरना पड़ा है। इसलिए मैं इस बातको स्वतःसिद्ध मान लेता हूँ कि अपनी सभाको “कांग्रेस" नाम देकर आप भी जहाँतक बन पड़े और आवश्यक हो इसकी पूर्वज संस्थाकी परम्पराओंका पालन करनेका संकल्प कर रहे हैं। मेरा खयाल है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसको मैं पूर्वज संस्था कह सकता हूँ । इसी बातके आधारपर मैं आज आपसे कहना चाहता हूँ कि कांग्रेस कैसी होनी चाहिए और भारतकी राष्ट्रीय कांग्रेस कैसे भारतमें अपनी इतनी प्रतिष्ठा बना सकी है। मैं जानता हूँ कि मेरा उसके साथ केवल १० सालका -- या अब तो १२ सालका भी कह सकता हूँ -- सम्बन्ध है। मगर जैसा कि आपको मालूम है, इन १२ सालोंतक कांग्रेसके साथ मेरा इतना घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है, मैं उसके साथ इतना एकाकार हो गया हूँ कि अब उसके बारेमें कुछ अधिकारके साथ आपसे बातें कर सकता हूँ। मगर दूसरी दृष्टिसे मेरा इस पूर्वज संस्थाके साथ सम्बन्ध लगभग ३० साल पुराना कहा जायेगा ।

सन् १८९३ में दक्षिण आफ्रिका जानेपर मैं कांग्रेसके सपने देखा करता था। मैं कांग्रेसके कामके बारेमें थोड़ा-बहुत जानता था, मगर इस महान संस्थाके एक भी वार्षिक अधिवेशनमें तबतक शामिल नहीं हुआ था । आप लोगोंके समान ही, मैंने नवयुवकके रूपमें वहाँ नेटाल भारतीय कांग्रेस स्थापित करनेमें हाथ बँटाया था । वह सभा भी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके ढंगपर ही बनी थी, और स्थानीय आवश्यकताओंके अनुसार उसमें जरूरी फेर-बदल कर लिये गये थे। इसलिए मैं १८९३ के बादसे ऐसी संस्थाओंके सिलसिलेमें अपने सार्वजनिक जीवनका अनुभव आपको बतला सकता हूँ। मैं उतने पहले, १८९४ में ही, यह समझ गया था कि ऐसी किसी भी सभाको सचमुच कारामद बनने और 'राष्ट्रीय' कहलानेके लिए जरूरी है कि उसके मुख्य-मुख्य कार्यकर्ता काफी कुछ आत्म-त्याग करें। मैं कहने जा रहा था कि उसके मुख्य कार्यकर्त्ता बहुत काफी आत्म-त्याग करें। मुझे आपके सामने यह कबूल करनेमें कोई हिचक नहीं कि हमारे उस छोटे समाजमें भी इस आदर्शपर अमल करना मैंने बहुत मुश्किल पाया, क्योंकि दक्षिण आफ्रिकाके उस सबसे छोटे प्रान्त नेटालके हमारे उस समाजमें लगभग ६० हजार आदमी तो थे ही, उनमें से भी अधिकांशको कांग्रेसकी कार्रवाईके सिलसिले में मत देनेका अधिकार नहीं था ।

फिर भी कांग्रेस पूरी तरह प्रातिनिधिक थी और लोगोंके सभी हितोंका ध्यान रखती थी, क्योंकि उसने अपनेको इन लोगोंके हिताहितका संरक्षक बना लिया था ।