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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उपयोग हि नहि है। इस बातका निश्चय करके अपना कर्त्तव्य हि सुख और शांति समज कर स [मय ] व्यतीत कीजीयो ।

लंकाकी मुसाफरीमें उद्यम तो बहोत रहता है परंतु मुलक बहोत रमणीय है। हवा ठंडी है इससे कुछ दुःख नहि होता है ।

बापुके आशीर्वाद

जी० एन० १६६० की फोटो-नकलसे ।

१९६. पत्र : आश्रमकी बहनोंको

सोमवार, २१ नवम्बर, [१९२७ ]

[१]

बहनो,

तुम्हारी तरफसे इस बार अभीतक पत्र नहीं मिला। लंकामें इतना ज्यादा घूमना होता है कि पत्र कोलम्बोसे तुरन्त नहीं पहुँच सकते ।

लंकाकी स्त्रियोंको देखकर अकसर आश्रमकी स्त्रियाँ याद आती हैं। एक तरफ स्त्रियोंकी पोशाक सादी है, यह तो लिख ही चुका हूँ। दूसरी तरफ, बड़े घरोंकी स्त्रियोंने शौक इतना ज्यादा बढ़ा लिया है कि उनके शरीरपर रेशम और जरीके सिवा कुछ भी नहीं पाया जाता। मेरी नजरमें तो यह बिलकुल शोभा नहीं देता । मैं मनसे यह पूछता रहता हूँ कि ये स्त्रियाँ ऐसी पोशाक किसे दिखाने या रिझानेको पहनती होंगी। यहाँ पर्दा तो है ही नहीं ।

स्त्रियाँ इतना सारा बनाव-सिंगार किसलिए करती हैं इस सवालका उत्तर जितना मैं दे सकता हूँ उससे तुम ज्यादा दे सकती हो । किन्तु यह सब देखकर मुझे यह खयाल तो आता ही है कि आश्रममें जो कमसे-कम शृंगार करनेकी रुढ़ि चल पड़ी है, वह अच्छा ही हुआ । मेरा मन यह तो नहीं मानता कि आश्रम शृंगार बिलकुल है ही नहीं। तुम्हारा [ मन ] मानता हो तो कहना |

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (जी० एन० ३६७७) की फोटो-नकलसे ।
 
  1. १. पत्रसे प्रगट है कि गांधीजी इस समय लंकामें थे, वर्षका निश्चय उसीके आधारपर किया गया है।