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१९४. पत्र : सतीशचन्द्र दासगुप्तको

२१ नवम्बर, १९२७

प्रिय सतीश बाबू,

तो अब आपने एक भाई खो दिया । अगर हम सीखें तो प्रियजनोंकी मृत्युसे हमें बहुत शिक्षा मिलती है। जन्मकी तरह ही वह भी सदा हमारे साथ रहती है। हर व्यक्तिको इस बातका ज्ञान है, लेकिन समय आनेपर हममें से कितने कम लोग उससे लाभ उठा पाते हैं, और जाने क्यों, हम हिन्दू लोग, जिन्हें मृत्युसे सबसे कम प्रभावित होना चाहिए, मुझे लगता है, हमीं लोग उससे सबसे ज्यादा दुखी होते हैं। क्या आपने 'महाभारत' में युद्धमें मरनेवालोंकी मृत्युपर लोगोंने जैसा लज्जाजनक विलाप किया है उसे पढ़ा है ? मैं यह आपके लिए नहीं लिख रहा हूँ। मैं महसूस करता हूँ कि आप अपेक्षतया सुचित्त हैं। मुझे हेमप्रभादेवीके बारेमें [सन्देह है ][१] । मैं चाहूँगा कि आप अपनी टिप्पणीके साथ इस पत्रका अनुवाद उनके सामने कर दें।

आपने जो खादी भेजनेका वादा किया था वह मुझे नहीं मिली। अगर आपने मेज दी होती तो मैं समझता हूँ कि मैं वह सव यहाँ बेच देता। मैं २ दिसम्बरको बरहामपुर, जिला गंजम पहुँचनेकी आशा करता हूँ। मैं २९ तारीखको लंकासे चलूंगा। २५ को कोलम्बोसे चलूंगा और २६ को जफना पहुँचूँगा ।

सप्रेम,

आपका,
बापू

अंग्रेजी (जी० एन० १५७९) की फोटो-नकलसे ।

१९५० पत्र : हेमप्रभादेवी दासगुप्तको

कैंण्डी
सोमवार [२१ नवम्बर, १९२७]

[२]

प्रिय भगिनी,
तुमारा खत मीला है।

सतीशबाबुके भाईके स्वर्गवास [ से ] तो दुःखी नहि हुई होगी। जन्मसे सुख क्या मरणसे दुःख क्या? यह तो गीतावाक्य है । निखिलका स्वास्थ्य अबतक अच्छा नहिं रहता है इससे तुमको बहोत व्यथा होती है मैं देख रहा हूँ। मैं कैसे आश्वासन दे सकुं ? सब ज्ञानका उपयोग यदि हम ऐसे समय पर न कर सके तो ज्ञानका कुछ

  1. १. यहाँ कुछ शब्द अस्पष्ट है ।
  2. २. गांधीजो इस दिन कैण्डीमें थे।