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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अन्य प्रकारसे गन्दा न करें तो अंकुश-कृमिकी बीमारी आपको कभी नहीं होगी। मैं आपके अभिनन्दनपत्र तथा उदारतापूर्वक दी गई थैलीके लिए एक बार फिर आपको धन्यवाद देता हूँ ।

[ अंग्रेजी से ]
विव गांधीजी इन सीलोन

१९३. पत्र : मीराबहनको

कैण्डी
सोमवार, २१ नवम्बर, १९२७

चि० मीरा,
तुम्हारे पत्र मिले।

यदि छोटेलालकी हालत में वहाँ सुधार न हो सकता हो तो उसे वायु परिवर्तनके लिए बाहर जाना चाहिए। देखना वह क्या करता है । त्यागीजीको यदि दूसरे हमलेसे बचना है तो उन्हें मुख्यतः दूधपर रहना चाहिए । भणसालीके लिए मुझे चिन्ता बनी हुई है। खुशी है कि पारनेरकर चले गये । बेहतर यही है कि पूरी तरह स्वस्थ होनेसे पहले वह न लौटें । तुम्हारे बाहर रहनेपर सुरेन्द्र तुम्हारी जगह बखूबी ले सकता है। मैं २ दिसम्बरको बरहामपुर पहुँचूँगा। तुम अपने आनेकी ठीक तारीख, समय और मार्ग बाबू निरंजन पटनायक, खादी डिपो, बरहामपुर (जिला गंजम) को तार या पत्रसे सूचित कर देना। गो-पालनपर दो या तीन पुस्तकोंसे ज्यादा मत पढ़ो मैं नहीं समझता कि उड़ीसामें तुम्हारे पास अध्ययनके लिए उतना समय होगा जितना तुम सोचती हो ।

मुझे याद पड़ता है कि मैंने तुम्हें [ अपनी ] माँ से चाहे जितनी किताबें और चीजें आदि न मँगानेको कहा था। लेकिन गो-पालन सम्बन्धी साहित्यके मामले में इस नियममें छूट ली जा सकती है। उनके परिचित विशेषज्ञ जिन पुस्तकोंकी सिफारिश करें, ऐसी सभी पुस्तकें वह भेज सकती हैं। मिलनेसे पहले यह मेरा अन्तिम पत्र है ।

सप्रेम,

बापू

अंग्रेजी (सी० डब्ल्यू० ५२९४) से ।
सौजन्य : मीराबहन