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२. भाषण : त्रिचनापल्ली नगरपालिकाके अभिनन्दनपत्रके उत्तर में

[१]

१७ सितम्बर, १९२७

मित्रो,

लगता है कि मुझमें अब और शक्ति नहीं रह गई है। त्रिचनापल्लीका कार्य- क्रम में सुविधापूर्वक जितना निपटा सकता हूँ उससे कहीं भारी है। लेकिन मैं उन लोगोंको निराश नहीं कर सकता जिन्होंने इतने सारे समारोहोंका आयोजन किया है। इसीलिए मेरे स्वास्थ्य सम्बन्धी सलाहकारके नाते डा० राजन्ने एक ऐसी योजना बनाई है जिससे मुझपर कमसे-कम बोझ पड़े, और में इन्हें पूरा भी कर सकूं। योजना यह है कि मैं इन आयोजनों में आप लोगोंसे बोलने में असमर्थता प्रकट करके पूर्ण मौन रखूं, हालाँकि यदि मेरा स्वास्थ्य ठीक होता तो मैं जरूर बोलता। बाजारका शिला- न्यास करके मुझे काफी हर्ष हुआ है। अभिनन्दनपत्रके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ और अपने मायावरम्के भाषणकी[२] ओर आप लोगोंका ध्यान दिलाता हूँ ।

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, १७-९-१९२७

३. क्या समाचार देंगे ?

२५-७-१९२७ सोमवारको सबेरे भाई कान्तिलाल हरिवल्लभदास पारेख सत्या- ग्रह आश्रमसे निकले और उसके बाद उसी दिन अहमदाबाद में कुछ-एक स्थानों में दिखाई पड़े, किन्त उसके बाद वे २६, २७ तारीखको कहाँ थे, इसकी खबर नहीं मिलती। किन्तु २८ तारीखको गुरुवारके दिन कुछ आश्रमवासियोंने उन्हें साबरमती में तैरते हुए देखा था। उन्हें तैरना अच्छा आता है। यदि वे किसी गुप्त स्थान में रह गये हों तो वे स्वयं अथवा कोई जान-पहचानवाला स्नेही-सम्बन्धी खबर देगा तो उपकार होगा और उनके वियोगमें दुःखी उनके पिता और वृद्धा दादीको इस शुभ समाचार से आनन्द होगा।

[गुजरातीसे ]
नवजीवन, १८-९-१९२७
  1. १. गांधीजीने, जो बहुत थके हुए प्रतीत होते थे, भाषण लिखकर दिया था जिसे सभामें चक्रवर्ती राजगोपालाचारीने पढ़ा था। दक्षिण भारत तथा लकाके अपने दौरेमें गांधीजोको खादी कोषके लिए थैलियाँ प्राप्त हुई थीं। उन्होंने सभास्थलोंपर भी धन-संग्रह किया और भेंट स्वरूप मिली वस्तुओंकी नोलामी की । इन संग्रहोंक विस्तृत विवरणके लिए देखिए परिशिष्ट २ ।
  2. २. देखिए खण्ड ३४, पृष्ठ ५७१-७६ ।