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१९१. चरखा संघके बारेमें

एक बिहारी सज्जनने जो कलकत्ता में रहते हैं, हिन्दीमें तीन प्रश्न पूछे हैं और वे उनके उत्तर 'नवजीवन' में चाहते हैं। चूंकि वे प्रश्न गुजरातियोंके लिए भी थोड़े बहुत उपयोगी हो सकते हैं इसलिए मैं उन्हें नीचे गुजरातीमें दे रहा हूँ । प्रश्न इस तरह हैं :

१. अखिल भारतीय चरखा संघके टूट जानेके बाद उसके संचित कोषका क्या होगा ? जिन लोगोंने इस कोषमें चन्दा दिया है, देते हैं, अथवा देंगे, उनका तो इसपर कोई स्वत्व नहीं रह जायेगा । तो इस कोषके अन्तिम उपयोगका निर्णय करते समय दाताओंकी सम्मति ली जायेगी अथवा नहीं ?

२. मेरे प्रान्त (बिहार) में साढ़ेतीन रुपयेमें आठ हाथकी एक जोड़ी मजबूत धोती मिल जाती है। पर यहाँ अभय आश्रम अथवा खादी प्रतिष्ठानमें सवा चार रुपये से कममें वैसी ही धोती नहीं मिलती। तो क्या इससे मेरे इस सन्देहकी पुष्टि नहीं होती कि इन संस्थाओंके संचालक अपने ऊपर अखिल भारतीय चरखा संघका नियंत्रण न होने से दलालीका लाभ लेते हैं; जबकि पूरा बिहारका काम सीधे चरखा संघके नियंत्रण में है।

३. निरंतर चेष्टा करते रहनेपर भी खादीके दाममें कमी क्यों नहीं हो रही है ? कमसे-कम बंगालमें तो गत दो वर्षोंमें कोई कमी नहीं हुई। हाँ, कपड़ेकी किस्ममें कुछ सुधार अवश्य हुआ है मैंने उपर्युक्त प्रश्न खादी आन्दोलनके कट्टर पक्षपाती होनेकी हैसियतसे पूछे हैं।

पहले प्रश्नमें चरखा संघके बारेमें कुछ अश्रद्धा है और दानियोंके सामान्य अधिकारके बारेमें अज्ञान है।

कितने ही ऐसे मित्र भी जो मुझे अच्छी तरह पहचानते हैं और चरखा संघके सदस्योंको भी खूब जानते हैं, सोचते हैं कि मेरे मरनेके बाद चरखा संघ टूट जायेगा और खादी की प्रवृत्ति समाप्त हो जायेगी। एक आलोचकने तो यहाँतक भविष्यवाणी की है कि मेरा शव भी चरखेकी लकड़ीसे जलाया जायेगा। ऐसी स्थितिमें यदि खादीके इस पक्षपातीके मनमें शंका उठी है तो क्या दोष दिया जाये ? पर उन्हें और उन जैसोंको मैं इत्मीनान दिलाना चाहता हूँ कि मेरी लाशको कोई चरखेकी लकड़ीसे नहीं जलायेगा। चरखा संघके सदस्य आज जो काम करते हैं, मेरे मरनेके बाद वे उससे दुगुना करनेवाले हैं। खादीके ऊपर अनन्य श्रद्धाका मैंने ही इजारा नहीं लिया है। देशमें खादी प्रवृत्तिके नेस्तनाबूद होनेका मैं एक भी चिह्न नहीं देखता; ऐसे चिह्न जरूर देखता हूँ कि खादीपर लोगोंका विश्वास बढ़ता जाता है। इसके अलावा चरखा संघकी समितिके सदस्य खादीके भक्त हैं। वे स्वतंत्र रूपसे विचार करते हैं। उनमें कितनोंने तो

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