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"भूँडी मूँछी "

छूट है। यदि आपकी झोंपड़ियाँ इस प्रकार बनी हुई नहीं हैं कि आप शिष्टता और आवश्यक गोपनीयताके नियमोंका पालन कर सकें, तो मैं आपके मालिकोंसे अनुरोध करूंगा कि वे आपको सुविधाएँ प्रदान करें ताकि आप वैसा कर सकें ।

ईश्वर आपको मेरे इन अन्तिम शब्दोंका महत्त्व समझनेमें मदद करे ।
[ अंग्रेजीसे ]
विव गांधीजी इन सीलोन

१९०. "भूँडी भूँछी"

कच्छसे बाहर रहनेवाले गुजरातियोंने शायद "भूँडी भूँछी" का नाम भी न सुना हो। ऐसा जान पड़ता है कि "भूँडी मूंछी" नामक कर केवल कच्छमें ही लिया जाता है। मेघवाल जातिमें[१] जो व्यक्ति पुनववाह करता है उससे यह कर लिया जाता है। इस करका दरबारकी ओरसे इजारा दिया जाता है। कहा जाता है कि अपनी आय बढ़ानेके लिए इजारेदार अनेक प्रकारके अत्याचार करते हैं ।

जब मैं कच्छमें[२] था तब इसके और अन्य बातोंके सम्बन्धमें महारावश्रीके[३] साथ मेरी बातचीत हुई थी और अवश्य ही मैंने यह आशा की थी कि "भूंडी मूंछी " कर तुरन्त खत्म हो जायेगा। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि मेरी यह आशा झूठी थी क्योंकि एक कच्छी पाठक लिखते हैं ।[४]

यही पत्रलेखक "मूंडी मूंछी" कर और उसके इजारेसे होनेवाले दुःखोंका वर्णन करते हैं। उसमें से मैं निम्नलिखित अंश उद्धृत करता हूँ।[५]

इसके उपरान्त अन्य अवतरणोंको प्रकाशित करनेमें शर्म आये ऐसी हकीकत भी पत्रलेखक देते हैं। उन्हें मैं प्रकाशित नहीं कर रहा हूँ। मैं ऐसी आशा रखता हूँ कि कदाचित् उपयुक्त हकीकतोंमें भी अतिशयोक्ति है। परन्तु पाणिग्रहणके लिए कर, और उसमें भी एक ही जातिपर, ऐसा कर हो ही नहीं सकता। मैंने कच्छमें ऐसा एक भी अधिकारी नहीं देखा, जिसने इस बार करका बचाव किया हो । " लम्बे अरसेसे चला आ रहा है", "किसीका ध्यान इस ओर गया ही नहीं", ऐसे बेबुनियाद उत्तर अवश्य कोई-न-कोई देता था। लेकिन हम सबको ऐसा लगा कि यह कर तो चला ही गया है और निर्दोष मेघवालोंकी दिक्कत दूर हो गई ।

परन्तु वैसा नहीं हुआ और पत्रलेखक मेरी मददकी आशा रखता है। मैं चाहता हूँ कि मेरे पास महारावश्रीको अथवा उनके अमलदारोंको समझानेकी शक्ति हो । वह हो

  1. १. एक अन्त्यज जाति ।
  2. २. गांधीजी २२ अक्टूबर, १९२५ से ३ नवम्बर, १९२५ तक कच्छमें थे।
  3. ३. कच्छ राज्यके तत्कालीन महाराजा ।
  4. ४. पत्र यहाँ नहीं दिया गया है।
  5. ५. नहीं दिया गया है।