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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

तो सभी जगहके लड़के बुरे बन रहे हैं। और जैसा कि आप जानते हैं, पारसियोंको निःसन्देह अग्निपूजक कहा जाता है या यों कहिए कि भ्रमवश कहा जाता है। वे आपसे ज्यादा अग्निपूजा करनेवाले नहीं हैं भले ही वे ईश्वरको सूर्यके रूपमें देखते हों जो कि अग्नि-देवताके अतिरिक्त और कुछ नहीं है ।

आपमें से बहुतसे भले पारसी सिगरेट नहीं पीते हैं, और जब भी आपके संरक्षणमें कुछ लड़के हों, तो आप उन्हें ऐसी शिक्षा दीजिए कि वे धूम्रपानसे अपना मुँह कभी दूषित न करें ।

यदि आपमें से कोई धूम्रपान करता हो तो आजसे वह इस बुरी आदतको छोड़ दे। धूम्रपानसे श्वास दूषित हो जाता है। यह गन्दी आदत है। धूम्रपान करनेवाला व्यक्ति जब रेलके डब्बेमें होता है तो यह खयालतक नहीं करता कि उसके आसपास स्त्रियाँ बैठी हैं या ऐसे व्यक्ति बैठे हैं जो धूम्रपान नहीं करते और उसके मुंहसे जो बदबू आती है वह उनके लिए नफरतकी बात हो सकती है।

दूरसे तो सिगरेट एक छोटी-सी चीज लगती है लेकिन सिगरेटका धुआँ जब किसीके मुंहसे अन्दर जाता है और फिर बाहर निकलता है तो वह विष होता है। धूम्रपान करनेवाले यह भी परवाह नहीं करते कि वे कहाँ थूकते हैं ।

यहाँ गांधीजीने यह समझाने के लिए कि तम्बाकूकी आदतका प्रभाव शराबसे ज्यादा खतरनाक होता है, टॉलस्टॉयको एक कहानीका हवाला दिया और आगे कहा :

धूम्रपानसे बुद्धि कुंठित होती है और यह एक बुरी आदत है। अगर आप डाक्टरोंसे पूछें, और यदि वे अच्छे डाक्टर हैं, तो वे आपको बतायेंगे कि बहुतसे मामलोंमें कैंसरका कारण धूम्रपान रहा है या कमसे-कम मूल कारण तो धूम्रपान ही होता है।

जब धूम्रपानकी कोई आवश्यकता ही नहीं है तो फिर लोग धूम्रपान करते क्यों हैं? यह कोई भोजन नहीं है। इसमें कोई आनन्द नहीं सिवा इसके कि पहले पहल हमें कोई [ 'इसके आनन्दका ] सुझाव देता है।

बालको ! यदि आप अच्छे लड़के हैं और यदि आप अपने शिक्षकोंके और माता- पिताके प्रति आज्ञाकारी हैं तो आप धूम्रपानसे दूर रहें और इस प्रकार आप जो-कुछ बचायें उसे कृपया भारतके मूख-पीड़ित लाखों लोगोंके लिए मेरे पास भेज दें।

[ अंग्रेजीसे]
विद गांधीजी इन सीलोन