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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दावा ब्राह्मण करें या कोई और। मेरा यह मत है कि जो श्रेष्ठताका दावा करता है, वह मनुष्य ही नहीं रह जाता।

लेकिन मेरी इन तमाम मान्यताओंके बावजूद वर्णाश्रम धर्ममें मेरा विश्वास कायम है। मेरे लेखे वर्णाश्रम धर्म एक ऐसा सिद्धान्त है जिसे आप और मैं चाहे जितनी कोशिश करके भी समाप्त नहीं कर सकते। इस सिद्धान्तको स्वीकार करनेका मतलब अपने-आपको उस एकमात्र सिद्धिकी साधनाके लिए मुक्त कर लेना है जिसके लिए हमें जन्म मिला है। वर्णाश्रम धर्मका मतलब विनय है। मैंने यह तो जरूर कहा है कि सभी मानव जन्मसे समान हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मैं कहता हूँ कि गुण वंश-परम्परासे नहीं आते। इसके विपरीत में मानता हूँ कि जिस प्रकार हर व्यक्ति वंश परम्पराके अनुसार विशेष रूपाकृतिको प्राप्त करता है उसी प्रकार वह अपने जन्मदाताओंकी कुछ विशेषताएँ एवं गुण भी प्राप्त करता है और इस चीजको स्वीकार कर लेनेका मतलब बहुत सारी शक्ति बचा लेना है। यदि हम स्पष्ट रूपसे ऐसा स्वीकार करके उसके अनुसार चलना भी चाहें तो इससे हमारी भौतिक महत्वाकांक्षाओंपर सहज ही एक अंकुश लग जायेगा और तब हम सब ओरसे निश्चिन्त होकर अपनी शक्तिको आध्यात्मिक चिन्तन और आध्यात्मिक विकासमें लगा सकेंगे। मैंने वर्णाश्रम धर्मके सिद्धान्तको उसके इस अर्थमें बराबर स्वीकार किया है। आप यह कह सकते हैं कि वर्णाश्रम धर्मका यह अर्थ आज नहीं समझा जाता है। मैंने स्वयं अनेक बार कहा है कि आज वर्णाश्रम धर्मको जिस रूपमें समझा और आचारमें उतारा जाता है वह मूल वर्णाश्रमकी अत्यन्त बुरी नकल है, तोड़-मरोड़ है, लेकिन इस तोड़-मरोड़को दूर करने में हमें मूलको ही नष्ट नहीं कर देना चाहिए। अगर आप मेरे बताये हुए आदर्श वर्णाश्रमको मान लेते हैं तो फिर आप मेरी सभी बातें मान लेते हैं। मैं आपसे यह विश्वास करने के लिए भी कहूँगा कि कोई राष्ट्र, कोई व्यक्ति उचित आदर्शोंके बिना जी ही नहीं सकता। और अगर आप आदर्श वर्णाश्रममें मेरी तरह विश्वास रखते हों, तो फिर आप उसे जहाँतक हो सके प्राप्त करनेके लिए भी मेरी तरह प्रयत्न अवश्य करेंगे। सच पूछा जाये तो दुनिया इस सिद्धान्तसे कहीं लड़ नहीं सकी है। इस सिद्धान्तसे लड़नेका परिणाम यही हुआ है और हमेशा यही होगा कि इस तरह हम अपना ही नुकसान करते हैं और एक ऐसी चीजके लिए प्रयत्न करते हैं जिसे हम कभी पा ही नहीं सकते। इसलिए मेरा कहना यह है कि यदि आप हमारे पूर्वजोंने विरासत में हमें जो कुछ दिया है उसे समझकर इस महान विरासत में जो दोष पैदा हो गये हैं उनके विरुद्ध संघर्ष करेंगे तो आपका संघर्ष और अधिक सफल होगा । और मैंने आपसे जो-कुछ कहा है उसे यदि आप स्वीकार कर लें तो ब्राह्मण और अब्राह्मण समस्याका समाधान भी, जहाँतक उस समस्याके धार्मिक पहलूका सम्बन्ध है, बहुत आसान हो जाता है। एक अब्राह्मणकी हैसियतसे में ब्राह्मण धर्मको, जहाँतक एक अब्राह्मणसे बन सकता है, शुद्ध बनानेकी कोशिश करूँगा, लेकिन कभी भी उसे नष्ट करनेका प्रयत्न नहीं करूंगा। में ब्राह्मणों- को दम्भपूर्वक अपनेको श्रेष्ठ माननेकी स्थिति से या ऐसे स्थानोंसे जहाँ उन्हें भौतिक