पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 35.pdf/२९

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

१. भाषण : तंजौरमें

१६ सितम्बर, १९२७

आज तंजौर आनेपर मैंने यहाँ ब्राह्मण-अब्राह्मण प्रश्नपर[१] चर्चा करनेकी उम्मीद की थी और तदनुसार दोपहरके बाद कुछ भाइयोंसे उसके सम्बन्धमें थोड़ी देर बातचीत करनेका भी मुझे सौभाग्य मिला। उस बातचीतके मजमूनपर चर्चा करने और उसे आपके सामने पेश करनेकी मुझे छूट नहीं है और न यह मेरे लिए जरूरी ही है। हाँ, इतना बता दूं कि इस बातचीत से मुझे अत्यन्त प्रसन्नता हुई। बातचीत के बाद में इस आन्दोलनको पहलेकी अपेक्षा शायद कुछ ज्यादा समझने लगा हूँ। मैंने अपना तुच्छ विचार उन मित्रोंके सामने रख दिया है और अब वे उसका चाहे जो उपयोग करें। लेकिन पूरी बातचीत में मुझे एक चीजकी ध्वनि बराबर मिलती रही और उस चीजसे वे बहुत परेशान मालूम पड़े । उनका खयाल ऐसा जान पड़ता था कि में जन्मगत श्रेष्ठता और हीनताके सिद्धान्तका पक्ष-पोषक हूँ। मैंने उन्हें विश्वास दिलाया कि यह बात तो मेरे मन में कभी आयीतक नहीं है। मैंने उनसे कहा कि इस श्रेष्ठताके प्रश्नके सम्बन्धमें यदि उनके मनमें कहीं कोई गलतफहमी हो तो उसे दूर करनेके लिए मैं, वर्णाश्रम धर्मसे मेरा क्या मतलब है, इस बातको अबतक जितने विस्तारसे समझा चुका हूँ, उससे अधिक विस्तारसे समझानेको तैयार हूँ। मेरे मतसे जन्म से अथवा स्वप्रयत्नसे प्राप्त श्रेष्ठता-जैसी कोई चीज नहीं है। मैं तो अद्वैतके महान बुनियादी सिद्धान्तको माननेवाला हूँ और अद्वैतकी मेरी व्याख्यामें ऊँच-नीचके फर्कके लिए कतई कोई स्थान नहीं है। इस सिद्धान्तमें मेरा अखण्ड विश्वास है कि सभी मनुष्य जन्मसे समान हैं। सबमें उसी एक आत्माका निवास है - चाहे वह भारत में जन्मा हो या इंग्लैंड अथवा अमेरिकामें या जैसे भी परिवेश-परिस्थिति में उत्पन्न हुआ हो, और चूंकि में मानव-मात्रकी सहज समानता में विश्वास करता हूँ इसीलिए उस श्रेष्ठताके सिद्धान्त के खिलाफ लड़ रहा हूँ जिस श्रेष्ठताका दावा हमपर शासन करनेवाली जातिके बहुत से लोग करते हैं। श्रेष्ठताके इस सिद्धान्त के खिलाफ में दक्षिण आफ्रिकामें पग-पगपर लड़ा हूँ, और अपने उसी सहज विश्वासके कारण में अपनेको भंगी, कतैया, बुनकर, किसान और मजदूर कहने में हर्षका अनुभव करता हूँ। और जहाँ-कहीं ब्राह्मणोंने अपने जन्मके कारण या बादमें ज्ञान प्राप्त कर लेनेके आधारपर श्रेष्ठताका दावा किया है, वहाँ में खुद इन ब्राह्मणोंके खिलाफ भी लड़ा हूँ । मुझे तो यह बात इन्सानियतके खिलाफ मालूम होती है कि आदमी आदमीको अपनेसे नीचा समझे । भगवद्गीता' में मेरे विचारका यथेष्ट समर्थन मिलता है। और इसीलिए मैं ऐसे हर अब्राह्मणके साथ हूँ, जो श्रेष्ठताके इस दानवसे लड़ता है, चाहे उस श्रेष्ठताका

  1. १. इस विषयपर महादेव देसाईके प्रश्नोतरके लिए देखिए परिशिष्ट १ । ३५-१