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भाषण : मिशनरी सम्मेलन, कोलम्बोमें

होनेपर स्वयं परख सकता है, और जहाँतक मैं देख सका हूँ, हृदय परिवर्तनकी यह प्रक्रिया कुछ इस प्रकार घटित होती है ।

महात्मा गांधीने आगे बोलते हुए कहा कि यदि किसी व्यक्तिको अपने अपराधका ज्ञान हो जाये, और वह अपने उस अपराधको धो डालना चाहे तो वह प्रार्थना और ईश्वरसे विनती करके उसे धोने की शुरूआत करता है। "प्रार्थना" और "विनती " इन शब्दोंके जो लौकिक अर्थ समझे आते हैं, उससे उनका अर्थ कहीं अधिक व्यापक है, और यदि हम अपने अन्दर उस सुनिश्चित परिवर्तनकी आवश्यक कसौटीको पूरा करें तो हमें अपने अन्दर विराजमान ईश्वरकी ज्यादा निश्चित अनुभूति होगी, और वह परिवर्तन आ जानेके बाद पाप करनेवालेको अपने अन्दर ऐसा महसूस होगा जैसे उसके लिए एक सुरक्षाकी दीवार खड़ी होती जा रही है, और इसके बावजूद वह अपनी किसी विशेषताके कारण नहीं बल्कि उस जीवन्त सुरक्षा-दीवार के कारण सुरक्षा महसूस करेगा जिसे वह अपने सामने, अपने चारों ओर, अपने नीचे, और अपने ऊपर बनते देखेगा, और इस दीवारके कारण वह पाप और अपराधसे परे हो जायेगा।

यह एक धीरे-धीरे होनेवाली प्रक्रिया है, लेकिन हमारे सामने वह चमत्कारकी भाँति सहसा घटित होती प्रतीत होती है और इसीलिए हम उसके लिए "प्रेस" [कृपा ] शब्दका इस्तेमाल करते हैं। मैं इस शब्दका खुलकर इस्तेमाल करता हूँ क्योंकि हिन्दू धर्ममें भी इसके लिए एक समानार्थी शब्द है। यह शब्द ईसाई धर्मके उपदेशोंसे ज्योंका-त्यों नहीं लिया गया है;यह तो हिन्दू पुरोहितोंकी नहीं,हिन्दूशास्त्रकारोंकी सभी पुस्तकोंमें सामान्य रूपसे पाया जाता है। उन्होंने अपने अनुभव लिपिबद्ध कर दिये थे और उन्होंने अपने अनुभवका वर्णन इसी तरह किया है। मुझे इस प्रक्रियाका ज्ञान कैसे हुआ मैं नहीं जानता; इसकी मुझे चिन्ता भी नहीं है। यदि में ईसाइयों के साथ अपने घनिष्ठ सम्पर्कके जरिये इस प्रक्रियातक पहुँचा हूँ तो मुझे इसकी खुशी होगी, और यदि में हिन्दू संस्कारोंमें पला-पुसा होने के कारण उस नतीजेपर पहुॅचा तो भी मुझे खुशी होगी। मेरा उद्देश्य तो यह पता चलाना है कि मैं अपने पापोंसे बच सकता हूँ कि नहीं; उस पापमयताके जबर्दस्त बोझसे कोई छुटकारा है कि नहीं, और इसीलिए मुझे लगता है कि यह एक धीमी प्रक्रिया है जो तबतक चलती रहती है जबतक वह इतनी विकसित नहीं हो जाती कि हम इसे महसूस करने लगें, और तब हम कहते हैं कि यह परिवर्तन सहसा हुआ है, लेकिन व्यक्तिगत रूपमें में सहसा परिवर्तनमें विश्वास नहीं करता। ईश्वर के ब्रह्माण्डमें चमत्कार-जैसी कोई चीज नहीं है। यह तो सुनिश्चित और अपरिवर्तनीय नियमोंके अनुसार चालित है। लेकिन चूंकि हम इन तमाम नियमोंको समझते नहीं हैं और चूँकि ईश्वरके कार्य इतने रहस्यपूर्ण और हमारी समझके बाहर हैं, हमारे लिए धीरज धारण करना जरूरी है, और तभी हमारा इसे चमत्कार कहना उचित होगा। लेकिन सारी प्रक्रियाको ठंडे दिमागसे देखते हुए में नहीं सोचता कि ईश्वर चमत्कारोंके जरिये काम करता है, और यदि मेरी