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भाषण : वाई० एम० सी० ए०, कोलम्बोमें

मुझसे कहा था। इस विषयपर बोलनेके लिए मेरे पास अधिक समय नहीं बचा है। मगर मैं उसका सार एक-दो वाक्योंमें देनेकी कोशिश करूंगा। एक बात तो यह है कि आप लोगोंका, जो बुद्धको अपने हृदयका देवता मानते हैं, बुद्धको जन्मभूमि और उनके उन वंशजोंके प्रति आपका कुछ कर्त्तव्य है, जिनके लिए वे जिये और मरे । आज उनके ये वंशज मुसीबतकी जिन्दगी गुजार रहे हैं, भुखमरीकी जिन्दगी गुजार रहे हैं। अतः मैं यह कहनेका साहस करता हूँ कि खादीके जरिये आप अपने हृदयोंके देवता और अपने बीच एक जीवन्त सम्बन्ध जोड़ सकेंगे। अगर आप उनकी शिक्षाकी मुख्य बातके अनुसार चलें और जीवनको क्षणिक मानते हुए उसका अर्थ सभी मौतिक वस्तुओंका त्याग मानें तो आप तुरन्त ही खादीके सन्देशकी खूब- सूरतीको समझ जायेंगे, जिसका कि दूसरा अर्थ है सादा जीवन और ऊँचे विचार । मैं आपमें से हरएकसे कहूँगा कि ये दो विचार लेकर आप अपने लिए खादीके सन्देश- का अर्थ खुद ही लगा लीजिए। आपने मुझपर जो कृपा दिखाई है, उसके लिए तथा अभिनन्दनपत्र और आपके आशीर्वादके लिए मैं आपको फिर धन्यवाद देता हूँ और आशा करता हूँ कि आपने मेरे नम्र सन्देशको उसी भावनासे ग्रहण किया है जिस भावनाके साथ वह दिया गया है। इसे आलोचककी आलोचना न समझकर दिली- दोस्तका सन्देश मानिए ।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २४-११-१९२७

१७७. भाषण : वाई० एम० सी० ए०[१] कोलम्बोमें

१५ नवम्बर, १९२७

कोलम्बोमें वाई० एम० सी० ए० के हॉलमें एकत्र भारी जन-समूहके सामने बोलते गांधीजीने कहा कि प्रतिदिन संसार-भरमें ईसाइयोंके साथ मेरा घनिष्ठ सम्पर्क होता जा रहा है और इस अवसरका में उसी सम्पर्कके एक और उदाहरणको तरह स्वागत करता हूँ | [ आगे उन्होंने कहा : ]

कुछ लोग ऐसे हैं जो मेरे यह साफ़-साफ़ इनकार करनेपर भी कि मैं क्रिश्चियन नहीं हूँ, मेरी बातको स्वीकार नहीं करते ।

ईसाका सन्देश, जैसा कि मैं उसे समझता हूँ, उनके "सरमन ऑन द माउंट " में विशुद्ध और सर्वांग रूपमें निहित है, और "सरमन ऑन द माउंट" के विषयमें भी, मेरी विनम्र व्याख्या रूढ़ व्याख्यासे कई दृष्टियोंसे भिन्न है। मेरी समझमें, पश्चिममें इस सन्देशको विकृत किया गया है। मेरा यह कहना छोटे मुँह बड़ी बात हो सकता है, लेकिन सत्यका भक्त होनेके नाते मैं जो महसूस करता हूँ, उसे कहने में मुझे हिच-

  1. ,१. यंग मैन्स क्रिश्चियन एसोसिएशन।