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भाषण : बौद्धोंकी सभामें

करें और खादी तैयार करें तो वास्तवमें तब भी आप बुद्धके अनुयायी ही समझे जायेंगे । यदि आप वैसा करेंगे तो आप एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करके समूचे संसारकी सहायता करेंगे। लेकिन इस बीच मैं आपको बता दूं कि यदि आप सब, शिक्षकगण और आप लोग, खादी पहनने लगें तो यह एक सही बात होगी और इस प्रकार आपने थैली भेंट करके जो एक कदम उठाया है, यह उसका अनुसरण होगा। मैं आपको एक बार फिर इस विद्यालय में आमन्त्रित करनेके लिए धन्यवाद देता हूँ और ईश्वरसे प्रार्थना करता हूँ कि वह आपको सुखी रखे ।

[ अंग्रेजीसे ]

सोलोन डेली न्यूज, १६-११-१९२७

विद गांधीजी इन सीलोन

१७६. भाषण : बौद्धोंकी सभामें

[१]

१५ नवम्बर, १९२७

आपके अभिनन्दनपत्रके लिए मैं आपको हृदयसे धन्यवाद देता हूँ। आपके इस सौजन्यका भी मैं आदर करता हूँ कि आपने उसका अनुवाद मुझे पहलेसे ही दे दिया था। मैं श्रीमान महाथेर और भिक्षुओंका भी उनके आशीर्वादके लिए उतना ही आभारी । मुझे आज जो आशीर्वाद यहाँ प्राप्त हुआ है इसे मैं अपना परम सौभाग्य मानता हूँ, और आज इस सभामें महाथेर और भिक्षुओंको विश्वास दिलाना चाहता हूँ कि मैं उस आशीर्वादके योग्य बननेकी कोशिश हमेशा करता रहूँगा। आपके मानपत्रमें भारतके बुद्ध गया मन्दिरका जिक्र आया है। श्रीमान महाथेरने भी उसका उल्लेख अभी किया । बहुत जमानेसे उस मन्दिरके बारेमें मैं दिलचस्पी लेता रहा हूँ और कांग्रेसकी ओरसे जो कुछ करना सम्भव था, बेलगाँवमें अ० भा० राष्ट्रीय कांग्रेसके सभापतिकी हैसियत से मुझे वह करनेका सौभाग्य प्राप्त हुआ था।[२] इस सिलसिलेमें कांग्रेसमें किये गये मेरे कार्यपर जो विवाद उठा था, उसका हवाला मेरे पास लंकाके किसी अज्ञात मित्रने भेजा था । उस समय उस झगड़ेमें पड़ना मैंने ठीक नहीं समझा था । अब भी उसके बारेमें कुछ नहीं कहना चाहता। मैं आपको सिर्फ यही भरोसा दिला सकता हूँ कि आपके दावोंको मनवानेके लिए मुझसे जो-कुछ सम्भव था, मैंने किया और अब भी करूंगा । मैं आपसे केवल इतना ही कह सकता हूँ कि कांग्रेसका उतना प्रभाव नहीं है जितना मैं चाहूँगा कि हो । स्वामित्वके अधिकारके सिलसिलेमें कितनी ही मुश्किलें उठ खड़ी होती हैं। कानूनी कठिनाइयाँ भी रास्ते हैं। कांग्रेसके पास जो अच्छेसे-अच्छे आदमी थे, उन लोगोंकी उसने एक समिति इसपर विचार करने और अगर हो सके तो उस

  1. १. यह भाषण कोलम्बोके वियोदय कालेज में अखिल लंका बौद्ध परिषद द्वारा दिये गये अभिनन्दन- पत्रके उत्तर में दिया गया था।
  2. २. देखिए खण्ड २५, पृष्ठ ५७९-८० ।