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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दयाका जो सन्देश गौतमने तुमको और मेरे देश भाइयोंको दिया, उसके लिए यदि तुम अपना आभार प्रकट करना चाहते हो तो तुम खादी जरूर पहनो । जहाँतक मैं जानता हूँ, तुम छोटे लड़कोंने और दूसरोंने जो कपड़ा पहन रखा है, वह कोलम्बो या लंकामें निर्मित नहीं है और यह देखते हुए कि अपने तनको ढँकनेके लिए तुम्हें कुछ कपड़ा खरीदना ही है, तुम्हारा यह प्रथम कर्त्तव्य है कि तुम वही कपड़ा खरीदो जो गौतमके देशभाइयों, करोड़ों भूखे लोगों द्वारा बुना गया है। और यदि तुम ऐसा करोगे तो तुम सन्मार्गमें जो दूसरा सिद्धान्त बताया गया है, उसके मुताबिक अमल करोगे या अमल करना शुरू कर दोगे। मैंने तुमको जो-कुछ बताया है वह है स्वभावतः तुम्हारे शिक्षकों और तुम्हारे माता-पिताओंपर भी दुगुना लागू होता है। यदि तुम चतुर, भले और बहादुर लड़के हो तो तुम इन सब बातोंकी चर्चा अपने शिक्षकों तथा माता-पितासे करोगे और उनसे पूछोगे : “गांधी नामके इस विचित्र व्यक्तिने यह क्या चीज बताई है ? और यदि मैं गलतीपर नहीं हूँ तो वे, मैंने तुमसे जो कुछ कहा है, उसका अक्षरशः समर्थन करेंगे। तुमने मुझे जो पैसा दिया है, वह इसी कामके लिए है और मैं तुमको और तुम्हारे शिक्षकोंको भारतके करोड़ों भूखे लोगोंके लिए यह पसा देनेके लिए धन्यवाद देता हूँ। खद्दर पहनना तो उस कदमका अनुसरण मात्र है जो आज तुमने उठाया है। भगवान तुम सबको सुखी रखे ।

[ अंग्रेजीसे ]

सोलोन डेली न्यज, १६-११-१९२७

बिद गांधीजी इन सीलोन

१७५. भाषण : नालन्दा विद्यालय, कोलम्बोमें

१५ नवम्बर, १९२७

प्रिंसिपल महोदय, शिक्षकगण और विद्यार्थियो,

जिस कामके लिए मैं इस सुन्दर द्वीपमें आया हूँ, उस काम के लिए मुझे दान देनेके लिए मैं आपको बहुत धन्यवाद देता हूँ। ...[१]

और मैं आपसे कहता हूँ कि बुद्धने जो दया-धर्मका सन्देश दिया है, यदि आप उसपर अमल करना चाहते हैं और गौतमका आपपर जो ऋण है, उसे चुकाना चाहें तो जबतक आप स्वयं खादी तैयार करने के काबिल नहीं हो जाते, तबतक आप भारतमें निर्मित खादी ही पहनें। मेरे अनुवादक मित्रने[२] बड़े गर्वके साथ मुझे बताया है कि जो कपड़ा वे पहने हुए हैं, वह लंकामें ही तैयार किया गया है। खैर, जबतक वह लंकामें तैयार की गई पर्याप्त खादी पेश करनेमें समर्थ हैं तबतक मैं आपको भारतमें निर्मित एक गज खादी भी खरीदनेसे मना करूंगा, लेकिन यदि आप अपने हाथोंसे काम

  1. १. इसके बाद गांधीजो बुद्ध और खादीके सन्देशके सम्बन्ध में बोले ।
  2. २. जे० एस० पी० जयवर्द्धन, जिन्होंने भाषणका सिंहलीमें अनुवाद किया।