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१७४. भाषण : आनन्द कालेज, कोलम्बोमें

१५ नवम्बर, १९२७

प्रिंसिपल महोदय, शिक्षकगण और विद्यार्थियो,

कोलम्बो और लंका आनेमें तथा आप लोगोंका परिचय प्राप्त करनेमें मुझे बहुत प्रसन्नता हुई है। मैं जहाँ-कहीं भी जाता हूँ, स्कूलके बच्चोंसे मिलना पसन्द करता हूँ।

यहाँ लंकामें अधिकांश लड़के बुद्धकी शिक्षासे प्रभावित रहते हैं। उस महान गुरुने हमें सन्मार्गका पाठ पढ़ाया है और बच्चो, तुम इस प्रकारकी संस्थाओंमें उस सन्मार्गको जाननेके लिए आते हो । उस सन्मार्गको जाननेका अर्थ केवल यही नहीं है कि हम उन बहुत-सी चीजोंको, जो श्रेष्ठ, भली और सुन्दर लगें, अपने मस्तिष्कमें भर लें, बल्कि यह भी है कि हम सही कार्य करें। खैर, सन्मार्गका पहला सिद्धान्त है सत्य बोलना, सत्यका विचार करना और सत्य-कर्म करना । और दूसरा सिद्धान्त है, प्रत्येक जीवधारीसे प्रेम करना । गौतम बुद्धमें करुणा और दया इतनी भरी हुई थी कि उन्होंने हमें मानवको ही प्यार करनेकी शिक्षा नहीं दी, बल्कि जिसमें भी जीवन है, उस सबसे, समस्त प्राणि-जगत्से प्रेम करना सिखाया। उन्होंने हमें अपने व्यक्तिगत जीवनको भी शुद्ध रखनेकी शिक्षा दी । इसलिए बच्चो, यदि तुम सत्याचारी नहीं हो, प्रेमपूर्ण और दयावान नहीं हो, तुम्हारा व्यक्तिगत आचरण पवित्र नहीं है तो इस संस्थामें तुमने कुछ नहीं सीखा । गौतम बुद्धका जन्म कहाँ हुआ था, यह मुझे तुममें से कौन लड़का बतायेगा ?

एक बहुत छोटे लड़केने, जो महात्माजीके सामने बैठा था, उत्तर दिया : उनका जन्म कपिलवस्तुम हुआ था ।

महात्माजी : और कपिलवस्तु कहाँ है ?

लड़का : यह भारतमें है ।

महात्माजी : तब मैं तुम सब लड़कोंसे कहता हूँ कि गौतमके देशके लोगोंका तुम लोगोंपर कुछ ऋण कुछ ऋण है, और, यदि तुम्हें पहले ही मालूम न हो, तो मुझे तुमको बड़े दुःखसे बताना पड़ रहा है कि जहाँ गौतमने जीवन व्यतीत किया और जहाँ उन्होंने उपदेश दिया और जिसे अपने पुनीत चरणोंसे उन्होंने पवित्र किया, उस देश में भयंकर गरीबी और संकट है। भारतकी जनता, वहाँके करोड़ों लोग जो आज इतने गरीब है, उसका एक कारण यह है कि उन्होंने अपने प्राचीन उद्योगको छोड़ दिया है या फिर वे उससे वंचित कर दिये गये हैं। मेरा मतलब चरखेसे है। खैर, अब वे चरखा फिर शुरू कर सकते हैं, बशर्ते कि भारतका प्रत्येक व्यक्ति और दूसरे लोग भी चरखेपर जो-कुछ काता जाये और बुना जाये, वह पहनने लगें । उस कपड़ेको खादी कहते हैं ।