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१७३. भाषण : कोलम्बो नगरपालिकाके अभिनन्दनपत्रके उत्तरमें

१५ नवम्बर, १९२७

अध्यक्ष महोदय और मित्रो,

सबसे पहले मैं इस बात के लिए क्षमा माँगता हूँ कि मैं आपके सामने खड़ा होकर नहीं बोल रहा हूँ। पिछले कई वर्षोंसे मैं सभाओंमें खड़े होकर बोलने में असमर्थ रहा हूँ; इसलिए यदि मैं आपका अभिनन्दनपत्र खड़ा होकर स्वीकार न कर सकूं, और आपके सामने बैठकर बोलूं तो उसे आप मेरी अशिष्टता नहीं समझेंगे। मुझे इसका भी दुख है कि इस समय मेरी आवाज ऐसी नहीं है जो दूरतक सुनाई पड़ सके, और मैं आपसे तथा कोलम्बोके नागरिकोंसे इस बातके लिए भी क्षमा चाहता हूँ कि मैं यहाँ समयपर नहीं पहुँच सका। लेकिन इस दोषका भार अधिक शक्तिशाली कन्धोंपर है। मेरा तात्पर्य वाइसराय महोदयसे है। उन्होंने मुझे दिल्ली आनेके लिए निमन्त्रित किया, और यदि आप वाइसराय महोदयकी कार्रवाईको अनुचित करार देनेवाला प्रस्ताव पास करना चाहते हैं तो मैं निश्चय ही आपका साथ दूंगा। लेकिन शायद आप वाइसराय महोदयको क्षमा कर देंगे और इस प्रकार मुझे भी ।

मेरे विलम्बसे आनेका दूसरा कारण यह था कि मैं दो माल ढोनेवाले जहाजोंके यात्रीके रूपमें आया, और दोनों जहाजोंके कप्तानों और अधिकारियोंकी इस कोशिशके बावजूद कि वे मुझे यहाँ जितनी जल्दी पहुँचा सकें, पहुँचायें, आप माल ढोनेवाले जहाजोंकी बन्दिशोंको समझ सकेंगे। माल ढोनेवाले जहाजोंको यात्रियोंके बजाय, जिन्हें एक प्रकारसे उनमें अनधिकार प्रवेश करनेवाला ही समझना चाहिए, लदे हुए मालकी फिक्र करनी होती है।

आपके हाथों यह अभिनन्दनपत्र पाना मेरे लिए बहुत खुशीकी बात है। मैं इसके लिए बिलकुल तैयार नहीं था। यदि आप इसे पसन्द करें तो मैं कहूँगा कि मैं तो यहाँ आर्थिक लाभके कारण आया हूँ। मैं अपने ही कुछ देशवासियोंके निमन्त्रणपर लंका आया हूँ और मैंने यह सारा वर्ष, जो अब समाप्त होनेको है, एक ऐसे कामके लिए चन्दा इकट्ठा करनेमें बिताया है जिसका उद्देश्य भारतके करोड़ों कंगालोंकी सेवा करना है। इन मित्रोंने मुझे जो प्रलोमन दिया वह बहुत आकर्षक था ।

मैं १९०१ में द्वीपोंमें मोतीके समान इस द्वीपमें आते-आते रह गया था। आपको शायद पता न हो कि दक्षिण आफ्रिकामें मेरे बहुत-से मुसलमान मित्र हैं। वे मुझे प्राणोंके समान प्यारे हैं और उनमेंसे कुछने मुझसे कहा कि भारत जाते हुए मैं कोलम्बो आऊँ और मैंने उस समय वैसा बहुत खुशीसे किया होता, और तब मैं आपके बीच एक पर्यटकके रूपमें इस सुन्दर द्वीपके अतुलनीय सौन्दर्यका आनन्द लेने और आपके द्वारा खुले हृदयसे किये गये आतिथ्यका सुख लेनेके लिए आया होता । लेकिन मैं वही बात