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पत्र: मीराबहनको

विकृत एकांगी तस्वीर है। उसमें सफेद झूठ, अतिरंजना और सन्दर्भ- अपेक्षित तथ्योंको दबाया गया है । कई लोगोने, जिनकी बातें लेखिकाने उद्धृत करनेका दावा किया है, उनका खण्डन किया है। यह विश्वास, जो अनुचित नहीं है, दिनों-दिन बढ़ रहा है कि किताब उनके इशारे पर लिखी गई है जो भारतको पश्चिममें जनताकी निगाहोंमें गिराना चाहते हैं । लम्बा अनुभव रखनेवाले अनेक विख्यात अंग्रेजों अमेरिकियों अंग्रेज मिशनरियोंने किताबमें कही बातोंका खण्डन और निन्दा की है।[१]

गांधी

अंग्रेजी (एस० एन० १२५५१) की फोटो-नकलसे ।

१७१. पत्र : मीराबहनको

१४ नवम्बर, १९२७

चि० मीरा,

मुझे तुम्हारे दो पत्र मिले ।

समुद्र-यात्रा मुझे काफी अच्छी लगी और इच्छा हुई कि काश कुछ और करता ।

इस महीनेकी २९ तारीखको लंकासे मैं निश्चित रूपसे रवाना हो जाऊँगा । उड़ीसामें सबसे पहले मैं गंजाम जिलेके बरहामपुरमें पहुँचूँगा। वहाँ पहुँचनेके दो रास्ते हैं, एक कलकत्ता होकर और दूसरा रायचूर-बेजवाड़ा होकर। दोनोंमें से कौन-सा सस्ता या अच्छा है, यह मुझे नहीं मालूम। तुम इसके बारेमें पता चलाकर तय करो। मैं समझता हूँ कि सुरेन्द्र इन दोनों रास्तोंसे परिचित है। २ दिसम्बरको मेरे बरहामपुर पहुँचनेकी आशा है। तो अब उड़ीसा में १ मास नहीं लगा पाऊँगा, जैसा कि मैंने सोचा था ।

अपेक्षित कपड़ेके परिमाणको कम करनेका तुम्हारा इरादा अनावश्यक है। घरमें तुम ऐसा कर सकती हो, लेकिन शायद सब अवसरोंके लिए नहीं। जो कार्य तुम्हें करना है, उसके लिए साड़ी तो शायद जरूरी ही हो । फिर भी मुझे मालूम नहीं । हमें ज्यादा जल्दी नहीं करनी चाहिए। खैर, इस मामलेमें मैं तुम्हारी इच्छामें दखल नहीं दूंगा ।

  1. १. १७-११-१९२७ को भेजे गये अपने उत्तरमें धनगोपाल मुखर्जीने गांधीजीको सूचित किया कि लेक्चर ब्यूरोने सरोजिनी नायडूको अमेरिका आने और अपने भाषणोंसे कुमारी मेथोको पुस्तक द्वारा भारतके सुपशको पहुँचाई गई हानिको दूर करनेका निमन्त्रण दिया है।