१६५. भेंट: पत्र-प्रतिनिधियोंसे
१३ नवम्बर, १९२७
प्रश्न: आपके फोटो-चित्र आपका सही चित्रण नहीं करते। क्या यह इस कारण है कि फोटो खिंचवाते समय आप मुस्कराते नहीं ?
[ गांधीजीने उत्तर दिया : ] मैं कभी फोटो नहीं खिंचवाता ।
प्रश्न: मैं सोचता हूँ कि लोग कहीं हायसे बने चित्रोंपर से तो
आपके फोटोनहीं बनाते ! उत्तर : यह तो फोटोग्राफर लोग ही जानते होंगे ।
[खादीकी प्रगतिके बारेमें पूछे जानेपर गांधीजीने कहा : ]
मुझे काफी कुछ सफलता मिली है।
प्रश्न: क्या आप सोचते हैं कि चरखा अन्ततः औद्योगीकरणकी बुराइयोंको दूर कर देगा ?
उत्तर : जहाँतक भारतका सम्बन्ध है, मेरी आशाका आधार मेरा विश्वास है। मैं इस विश्वासके आधारपर आशा रख रहा हूँ कि भारतमें चरखेका प्रचार सर्वत्र हो जायेगा और वह औद्योगीकरणकी कई बुराइयोंको दूर कर देगा ।
[ साइमन आयोगके बारेमें मत प्रकट करनेका अनुरोध किये जानेपर गांधीजीने कहा : ]
जहाँतक मेरा सम्बन्ध है, इस मामले में मेरा अन्तःकरण राष्ट्रीय कांग्रेसके अध्यक्ष महोदय और सामान्य रूपसे कांग्रेसके हाथोंमें है।
प्रश्न : यदि आप असंतुष्ट हों तो क्या आप बहिष्कारकी सलाह देंगे ?
उत्तर : इस मामले में कांग्रेसके नेताओंकी रायको छोड़ मेरा कोई मत नहीं है । प्रश्न : वे जो भी निर्णय करें, क्या आप उसे मानने को तैयार हैं ? उत्तर : हाँ, मैं उसे स्वीकार करूँगा, और यदि मैं उसका समर्थन नहीं कर सकता तो मैं उसका प्रतिरोध भी नहीं करूंगा ।
प्रश्न: क्या आप समझते हैं कि राजनयिकोंके शान्तिके प्रयत्न सफल होंगे या आप सोचते हैं कि संसार दूसरे युद्धकी ओर बढ़ रहा है ?
उत्तर : इस प्रश्नका उत्तर देना कठिन है। लक्षण यही दिखाई पड़ते हैं कि संसार दूसरी लड़ाईकी तैयारी कर रहा है, लेकिन हमें आशा यही करनी चाहिए कि उसे टालना सम्भव हो सकता है।
सीलोन डेली न्यूज, १४-११-१९२७