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अनमेल विवाह अथवा बालहत्या

यह विषयान्ध वृद्ध पुनः अपने दूसरे पत्र में अपनी आशाओंका ज्यादा प्रदर्शन इस प्रकार करता है।[१]

इस पत्रपर से हम देखते हैं कि भट्टजी इस सम्बन्धको "शुभ कार्य " मानते हैं और अपने हृदयकी यह अभिलाषा अपने दामादपर प्रकट करते हैं कि जैसी "जापानी रेशमी टुकड़ियों "वाली चुनरी उनकी कन्या “प्रभाके लिए मँगाई गई थी वैसी " साड़ी ली जानी चाहिए और प्रभाकी उम्रकी उस बाल-बहूको पहनायी जानी चाहिए; उनकी अपेक्षा है कि चुनरी ओढ़ानेका यह "शुभकार्य शुभकार्य " उनकी बड़ी लड़की जीवीके हाथों सम्पन्न हो ।

लेकिन दोनों बड़ी लड़कियाँ और दामाद इस पाप-पूर्ण सम्बन्धकी निन्दा करते हैं, उसका विरोध करते हैं और दामाद पत्र लिखकर ससुरसे विनती करता है कि वे इस पापसे बचें। उसके उत्तरमें भट्टजी लिखते हैं ।[२]

इस तरह रस्सी जलते समय भी अपने बल नहीं छोड़ती। यदि इस पापकर्ममें दामाद और लड़कीकी मदद न मिले तो अब भी कदाचित् इस बालहत्यासे भट्टजी बच जायें, ध्रांगध्रा बच जाये और भारतवर्ष भी बचे ।

ऐसे कुकर्मोको रोकनेका उपाय केवल प्रबल लोकमत ही है। यहाँ लोकमतका अर्थ है वृद्ध केशवलालका दामाद, लड़की और उसके नाती, सम्बन्धी और पास-पड़ोस इन सबको बिना हताश हुए दृढ़तापूर्वक भट्टजीको समझना चाहिए। लड़कीके पिताको भी लड़कीकी हत्या करनेसे रोकनेका प्रयत्न करना चाहिए। इस तरह यदि भट्टजीके साथ सब तरहसे असहकार हो तो अभीतक इस कुकर्मके टलनेकी गुंजाइश है।

भट्टजी और उनके जैसे अन्य वृद्ध विधुरोंको जो अपनी वासनापर नियन्त्रण नहीं पा सकते, असंख्य विधवाओंकी बात सोचनी चाहिए। विषय-बैरी तो स्त्री-पुरुष दोनोंको एक समान दुःख देता है। पवित्र विधवाओंका स्मरण करके विधुर शान्त क्यों नहीं हो सकते ।

[गुजरातीसे ]
नवजीवन, १३-११-१९२७
  1. १. पत्र यहाँ नहीं दिया गया है।
  2. २. पत्र यहाँ नहीं दिया गया है।