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पत्र : डाह्याभाई पटेलको

व्यक्तिको स्वप्नदोष होता है, वह कभी निश्चिन्त रह ही नहीं सकता। अतः जो व्यक्ति विकारको जीतनेका शुद्ध हृदयसे प्रयत्न करता है, जाग्रत अवस्थामें विकारोंको अपने वश में रख सकता है, वह स्वप्नदोष होनेपर घबराता नहीं बल्कि स्वप्नदोष होनेपर और सावधान हो जाता है और यह समझकर कि विकार उसे धीरे-धीरे खाये जा रहे हैं, वह उनसे बचनेका प्रयत्न करता रहता है। यदि इतना करनेपर भी स्वप्न- दोष बन्द न हो तो वह धीरजसे काम ले और प्रयत्न करना न छोड़े। मैं स्वयं भी स्वप्नदोषसे सर्वथा मुक्त नहीं हूँ। मुझे याद पड़ता है एक समय मैं बरसों स्वप्नदोष से मुक्त रहा हूँ किन्तु भारत लौट आने और दूध पीना शुरू कर देनेके बाद ये दोष बढ़ गये । दूधके अतिरिक्त इसके अन्य कारण भी हैं। यहाँके वातावरणसे बीते दिनोंकी याद ताजी हो गई। यह प्रकरण 'आत्मकथा' में भी आयेगा । तुम उसे पढ़ना ।

[ गुजरातीसे ]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।
सौजन्य : नारायण देसाई

१६०. पत्र : डाह्याभाई पटेलको

कार्तिक बदी १ [१० नवम्बर, १९२७ ]]

[१]

भाईश्री डाह्याभाई,

तुम्हारा पत्र मिला था। समुद्रके रास्ते कोलम्बो जा रहा हूँ अतः थोड़ा-सा समय मिल गया है जिससे पत्रोंको निबटा रहा हूँ। मुझे अचानक आश्रममें दो दिन बितानेका मौका मिल गया। निरन्तर प्रयत्न करनेसे अहंभाव निश्चय ही चला जायेगा । मैं जनवरी में आश्रम पहुँचूँगा, तब तुम अवश्य आना ।

बापूके आशीर्वाद

भाईश्री डाह्याभाई

जिला कांग्रेस कमेटी

घोलका, बी० बी० ऐण्ड सी० आई० रेलवे
गुजराती (सी० डब्ल्यू० २६९९) से ।
सौजन्य : डाह्याभाई पटेल
 
  1. १. गांधीजीको लंका यात्रा के आधारपर वर्ष निर्धारित किया गया है।